रूस की श्रमिक संकट और भारत की संभावना
यूक्रेन युद्ध की वजह से बड़ी संख्या में युवा रूसी नागरिक सैन्य सेवा में भर्ती हो गए हैं, जबकि लाखों की संख्या में अन्य नागरिक देश छोड़कर बाहर चले गए हैं। इसके साथ-साथ जनसंख्या में गिरावट और प्रवासी विरोधी नीतियों ने रूस की श्रम शक्ति को कमजोर कर दिया है। परिणामस्वरूप, निर्माण, मशीनरी, टेक्सटाइल, और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में कुशल कामगारों की भारी कमी महसूस की जा रही है।
ऐसे में भारत एक स्वाभाविक साझेदार बनकर उभरता है। भारत की युवा आबादी और तकनीकी कौशल, खासकर ITI, पॉलिटेक्निक, और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में, रूस की जरूरतों के अनुकूल है। यही कारण है कि 2021 में जहां केवल 5,480 भारतीयों को रूस में वर्क परमिट मिला था, वहीं 2024 में यह संख्या बढ़कर 36,208 तक पहुंच गई। हालियां रिपोर्ट्स के अनुसार रूस की कंपनियां बड़ी संख्या में भारतीयों को जॉब दे रही हैं।
भारत-रूस सहयोग का नया अध्याय
यह बढ़ती साझेदारी केवल श्रम तक सीमित नहीं है। पीएम नरेंद्र मोदी की हाल की रूस यात्रा और येकातेरिनबर्ग तथा कज़ान जैसे शहरों में नए भारतीय वाणिज्य दूतावासों की घोषणा इस बात का संकेत है कि दोनों देश एक दीर्घकालिक सहयोग की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यह न केवल श्रमिकों के लिए कांसुलर सेवाएं सुलभ बनाएगा, बल्कि व्यापार, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी गति देगा।
रोजगार की वैश्विक भूगोल में भारत का उदय
भारत के लिए यह एक बड़ा अवसर है। देश के लाखों युवाओं को रोजगार की तलाश है, लेकिन घरेलू स्तर पर पर्याप्त औद्योगिक विकास और रोज़गार सृजन की चुनौती बनी हुई है। ऐसे में रूस जैसे देशों में रोजगार के अवसर भारतीय परिवारों के लिए राहत और समृद्धि का कारण बन सकते हैं। साथ ही, इससे भारत को बड़ा लाभ मिलेगा, जो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में सहायक होगा।
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