हड़ताल की पृष्ठभूमि
करीब 11,000 संविदा कर्मी, जो विशेष सर्वेक्षण कार्य में राज्यभर में तैनात हैं, बीते कई दिनों से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। इनकी प्रमुख मांग यह है कि उन्हें स्थायी नौकरी दी जाए और सेवा अवधि को 60 वर्ष तक बढ़ाया जाए। 16 अगस्त से अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा की गई, जिसकी अगुवाई संघ के अध्यक्ष रोशन आरा और सचिव विभूति कुमार कर रहे हैं। विभाग के अनुसार, ये दोनों अपने कर्तव्यों से अनुपस्थित रहते हुए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, जो अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है।
सरकारी पक्ष की दलील
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग का तर्क है कि संविदा कर्मियों की सेवा एक निश्चित शर्तों के अधीन होती है, जिनमें कार्य बहिष्कार, हड़ताल या सरकारी आदेशों की अवहेलना की कोई गुंजाइश नहीं होती। विभाग ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई संबंधित जिलों से प्राप्त प्रतिवेदन और प्रमाणों के आधार पर की गई है। विभाग का यह भी कहना है कि वर्तमान समय में राज्य में चल रहे राजस्व महाअभियान के दौरान यह हड़ताल आम जनता को प्रभावित कर रही थी, जिसके कारण सेवा समाप्ति का निर्णय लेना आवश्यक हो गया।
संविदा कर्मियों की पीड़ा
संविदा कर्मियों का मानना है कि वर्षों से सरकारी कार्यों में योगदान देने के बावजूद उन्हें न तो स्थायीत्व मिला है और न ही उचित सामाजिक सुरक्षा। कई कर्मी ऐसे भी हैं, जो बीते 5 से 10 वर्षों से एक ही पद पर कार्यरत हैं, फिर भी उनका भविष्य अनिश्चित बना हुआ है। उनका कहना है कि सरकार उनकी मेहनत को नजरअंदाज कर रही है और लोकतांत्रिक तरीके से हक की मांग करने पर उन्हें बर्खास्त किया जा रहा है।
सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव
इस घटनाक्रम ने बिहार में संविदा व्यवस्था की खामियों को उजागर कर दिया है। जहां एक ओर सरकार अनुशासन और सेवा शर्तों का पालन सुनिश्चित करना चाहती है, वहीं दूसरी ओर हजारों संविदा कर्मी स्थायीत्व और सम्मानजनक रोजगार की मांग कर रहे हैं। अगर यह गतिरोध लंबे समय तक जारी रहता है, तो इससे न केवल प्रशासनिक कामकाज प्रभावित होगा, बल्कि सरकार और जनता के बीच भरोसे की खाई भी बढ़ेगी।
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