1. सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बड़ा इजाफा
राज्य सरकार ने बुजुर्गों, दिव्यांगजनों और विधवा महिलाओं की मासिक पेंशन ₹400 से बढ़ाकर ₹1100 कर दी है। यह महज आर्थिक राहत नहीं, बल्कि सरकार की कोशिश है कि वे सामाजिक सुरक्षा के मामले में संवेदनशील दिखें।
2. स्वयं सहायता समूहों को राहत
जीविका परियोजना के तहत अब 3 लाख से अधिक के बैंक ऋण पर ब्याज दर 10% से घटाकर 7% कर दी गई है। महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह कदम बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
3. युवा आयोग की स्थापना
राज्य में 'स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता' देने के उद्देश्य से एक युवा आयोग का गठन किया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि नीतीश कुमार युवाओं को लेकर गंभीर हैं और उनका ध्यान सिर्फ सरकारी नौकरी तक सीमित नहीं है, बल्कि प्राइवेट सेक्टर में भी अवसर सुनिश्चित करना है।
4. एक करोड़ रोजगार का वादा
आगामी पांच वर्षों में एक करोड़ युवाओं को रोजगार देने का लक्ष्य तय किया गया है। यह घोषणा बिहार जैसे राज्य के लिए बेहद महत्वाकांक्षी है। अगर यह हकीकत में बदलता है तो नीतीश कुमार के लिए यह ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।
5. बिजली पर चुनावी जंग
तेजस्वी यादव ने जहां 200 यूनिट मुफ्त बिजली का वादा किया था, नीतीश सरकार ने 125 यूनिट फ्री बिजली की घोषणा कर जवाबी हमला किया है। यह बिजली उपभोक्ताओं को सीधा लाभ पहुंचाता है, लेकिन साथ ही यह चुनावी प्रतिस्पर्धा का प्रतीक भी है।
6. पत्रकारों को भी तोहफा
पत्रकारों की पेंशन ₹6000 से बढ़ाकर ₹15000 कर दी गई है और मृत्यु के बाद आश्रितों को मिलने वाली पेंशन ₹3000 से बढ़ाकर ₹10000 कर दी गई है। यह सरकार का मीडिया वर्ग को सम्मान देने का प्रयास है, जो चुनावी नैरेटिव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
चुनावी रणनीति या विकास का एजेंडा?
इन सभी घोषणाओं को एक तरफ सामाजिक कल्याण के नजरिए से देखा जा सकता है, लेकिन चुनाव से महज कुछ महीने पहले इनका आना यह भी संकेत देता है कि नीतीश कुमार हर मोर्चे पर विपक्ष को घेरने की तैयारी में हैं। खासकर तेजस्वी यादव की लोकप्रियता को देखते हुए नीतीश यह मानकर चल रहे हैं कि इस बार मुकाबला आसान नहीं है।

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