ब्रिक्स बनाम जी-7: GDP के आंकड़ों में बदलता वैश्विक संतुलन

नई दिल्ली। दुनिया की आर्थिक संरचना बीते कुछ वर्षों में तेज़ी से बदल रही है। परंपरागत रूप से पश्चिमी देशों का वर्चस्व रही वैश्विक अर्थव्यवस्था आज एक नए दौर में प्रवेश कर रही है, जहाँ ब्रिक्स (BRICS) जैसे समूह उभरती अर्थव्यवस्थाओं के प्रतीक बनकर सामने आ रहे हैं। जी-7 (G7) और ब्रिक्स की GDP तुलना के ज़रिए यह स्पष्ट हो रहा है कि वैश्विक शक्ति संतुलन अब एकध्रुवीय नहीं रह गया है।

जी-7 और ब्रिक्स: परिचय

G7 यानी ग्रुप ऑफ सेवन, विकसित औद्योगिक देशों का एक समूह है जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, कनाडा और जापान शामिल हैं। यह समूह वैश्विक वित्तीय नीतियों और भू-राजनीतिक मामलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है।

BRICS एक बहुपक्षीय समूह है जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। वर्ष 2023 में इसमें कई नए देश जैसे कि ईरान, सऊदी अरब, मिस्र, यूएई और इथियोपिया भी जुड़े, जिससे इसका विस्तार और प्रभाव दोनों बढ़े हैं।

GDP के आँकड़ों में अंतर: कौन आगे?

नॉमिनल GDP के आधार पर:

जी-7 अभी भी नॉमिनल GDP यानी बाज़ार मूल्य पर आधारित अर्थव्यवस्था में आगे है। 2024 तक, G7 देशों की कुल GDP लगभग $45 ट्रिलियन के आसपास थी, जबकि BRICS की कुल नॉमिनल GDP $28-30 ट्रिलियन रही। इसका मुख्य कारण अमेरिकी डॉलर की मज़बूती और G7 देशों में उच्च प्रति व्यक्ति आय है।

PPP (Purchasing Power Parity) के आधार पर:

यहाँ कहानी पलट जाती है। PPP एक ऐसा मानक है जो देशों की क्रय शक्ति की तुलना करता है, और इस आधार पर BRICS देशों की संयुक्त GDP G7 से अधिक हो चुकी है। 2024 में BRICS की GDP PPP के आधार पर $56 ट्रिलियन के आसपास रही, जबकि G7 की PPP GDP करीब $52 ट्रिलियन रही।

भविष्य की दिशा:

BRICS+ विस्तार: नए सदस्य देशों के साथ BRICS का प्रभाव और भी अधिक हो जाएगा। ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा और दक्षिण-दक्षिण सहयोग जैसे मुद्दों पर इसकी भूमिका अहम होगी।

संस्थागत मजबूती की चुनौती: BRICS के सामने यह चुनौती रहेगी कि वह G7 जैसी नीतिगत एकता और संस्थागत शक्ति हासिल कर सके।

डॉलर पर निर्भरता घटाना: ब्रिक्स देश अब अपनी व्यापारिक लेनदेन में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने लगे हैं।

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