भारत ने तैयार किया गैस टर्बाइन इंजन, दुनिया हैरान!

नई दिल्ली। भारत ने अपने एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर पार किया है। राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाओं (NAL) ने 100 किलोग्राम थ्रस्ट श्रेणी के छोटे गैस टरबाइन इंजन NJ-100 का सफलतापूर्वक विकास किया है। यह इंजन खासतौर पर सामरिक यूएवी (मानव रहित हवाई वाहन) और क्रूज मिसाइलों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो देश की प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता के सपने को नई उड़ान देगा।

क्यों है NJ-100 का विकास महत्वपूर्ण?

पिछले दशकों में भारत की रक्षा प्रणाली कई विदेशी प्रोपल्शन तकनीकों पर निर्भर रही है। यूक्रेन, रूस जैसे देशों से टर्बोजेट इंजन आयात करने की आवश्यकता ने देश की सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता को सीमित किया। ऐसे समय में NJ-100 का विकास न केवल भारत को आयात निर्भरता से मुक्त करेगा, बल्कि देश की रक्षा क्षमताओं को भी मजबूत करेगा।

NJ-100 के पास 100 किलोग्राम थ्रस्ट रेटिंग है, जो इसे छोटे और मध्यम आकार के हथियार प्रणालियों जैसे क्रूज मिसाइलों, सामरिक यूएवी और लोइटरिंग हथियारों के लिए एक उपयुक्त प्रोपल्शन विकल्प बनाता है। इसके कॉम्पैक्ट आकार, उच्च थ्रस्ट-टू-वेट अनुपात और ईंधन दक्षता इसे आधुनिक युद्ध के लिए अत्यंत जरूरी बनाते हैं।

NJ-100 और भारत की रणनीतिक महत्वता

आधुनिक युद्ध की तकनीक में लंबी दूरी के ड्रोन और लोइटरिंग हथियारों की भूमिका तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में स्वदेशी विकसित NJ-100 इंजन इन प्रणालियों के लिए एक आत्मनिर्भर प्रोपल्शन समाधान प्रदान करेगा। यह कदम न केवल भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी मजबूती देगा।

भारत के लिए यह इंजन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल लागत को कम करेगा, बल्कि विदेशी तकनीकी हस्तांतरण पर निर्भरता के जोखिमों को भी घटाएगा। देश को अब उन रणनीतिक प्रणालियों के लिए आयात पर कम निर्भर रहना होगा, जो पहले विदेशी स्रोतों पर निर्भर थीं।

वर्तमान स्थिति और भविष्य की राह

वर्तमान में भारत के कई क्रूज मिसाइल और यूएवी कार्यक्रमों में आयातित प्रोपल्शन सिस्टम्स का उपयोग होता है। NJ-100 के सफल परीक्षण और उत्पादन से यह पूरी संभावना है कि आने वाले वर्षों में इन प्रणालियों में स्वदेशी इंजन का इस्तेमाल बढ़ेगा। इससे न केवल रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि भारत की तकनीकी प्रगति और वैश्विक रक्षा बाजार में प्रतिस्पर्धा भी सशक्त होगी।

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