यूपी में "मनरेगा श्रमिकों" के लिए नई व्यवस्था लागू

लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत श्रमिकों की उपस्थिति प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक नई और ठोस निगरानी व्यवस्था लागू की है। यह पहल केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य फर्जीवाड़ा रोकना और श्रमिकों को उनके श्रम का न्यायसंगत लाभ दिलाना है।

क्यों जरूरी थी यह नई व्यवस्था?

मनरेगा के तहत बड़ी संख्या में ग्रामीण श्रमिकों को रोजगार मिलता है, लेकिन विगत वर्षों में कई जिलों से फर्जी उपस्थिति, बिना काम के भुगतान और फोटो अपलोड में गड़बड़ी की शिकायतें सामने आई थीं। इन खामियों को दूर करने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अब उत्तर प्रदेश में एक त्रिस्तरीय निगरानी तंत्र लागू किया गया है।

निगरानी तंत्र का ढांचा

नई व्यवस्था के अंतर्गत ग्राम, ब्लॉक और जिला—तीनों स्तरों पर निगरानी की ठोस व्यवस्था की गई है:

1. ग्राम स्तर पर निगरानी

ग्राम रोजगार सेवक और पंचायत सचिव प्रत्येक अपलोड की गई तस्वीर और उपस्थिति का 100 प्रतिशत सत्यापन करेंगे। यह सबसे बुनियादी स्तर पर निगरानी को मजबूत करता है, क्योंकि यहीं से डाटा सबसे पहले अपलोड होता है।

2. ब्लॉक स्तर पर निगरानी

यहाँ कार्यक्रम अधिकारी अपलोड की गई तस्वीरों में से हर 200 तस्वीरों की जांच करेंगे या कुल तस्वीरों का कम से कम 20 प्रतिशत रैंडम आधार पर सत्यापित करेंगे। यह मध्यवर्ती स्तर पर निगरानी सुनिश्चित करता है, ताकि पंचायत स्तर पर हुई किसी भी अनियमितता की पहचान की जा सके।

3. जिला स्तर पर निगरानी

जिला कार्यक्रम समन्वयक: प्रतिदिन 30 तस्वीरों की रैंडम जांच करेंगे। जिला स्तरीय स्थायी कर्मचारी: 100 तस्वीरें या कुल का 10 प्रतिशत जांचेंगे। जबकि संविदा कर्मचारी/आउटसोर्स कर्मचारी: 200 तस्वीरों की जांच करेंगे। सभी तस्वीरों और उपस्थिति विवरणों को अनिवार्य रूप से डाउनलोड कर जिला कार्यालय की हार्ड डिस्क में सुरक्षित रखा जाएगा, जिससे भविष्य में किसी भी स्तर पर सत्यापन किया जा सके।

डिजिटल और मैनुअल प्रणाली का संयोजन

जब तक यह नई प्रणाली पूरी तरह से लागू नहीं हो जाती, तब तक जिलों को मैन्युअल सत्यापन की प्रक्रिया भी समानांतर रूप से जारी रखने के निर्देश दिए गए हैं। यह पारदर्शिता और सुचारु संचालन की गारंटी देता है।

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