रूस से दूरी की वजहें क्या हैं?
रूस से मिलने वाली तेल की भारी छूट हाल ही में घट गई है, जिससे भारतीय रिफाइनरी कंपनियों के लिए यह सौदा पहले जितना आकर्षक नहीं रहा। साथ ही, अमेरिकी दबाव ने स्थिति को और संवेदनशील बना दिया है। ट्रंप ने साफ कहा है कि रूस से तेल खरीदने वाले देशों को ‘रूस समर्थक’ माना जाएगा। इसके परिणामस्वरूप, भारत से आने वाले उत्पादों पर 25% टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने का फैसला भी लिया गया है, जो 1 अगस्त से लागू होगा।
नया तेल कहां से आएगा?
इन हालात में, सरकारी तेल कंपनियों ने अपने आपूर्तिकर्ता बदल दिए हैं। अब वे स्पॉट मार्केट से तेल खरीद रही हैं — यानी वह बाज़ार जहां तत्काल डिलीवरी के लिए सौदे किए जाते हैं। वर्तमान में भारत की नजर अबू धाबी से मुरबान क्रूड और पश्चिम अफ्रीकी देशों की ओर है। यह तेल अपेक्षाकृत महंगा है, लेकिन राजनीतिक रूप से कम संवेदनशील।
निजी कंपनियों का क्या रुख है?
रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और नायरा एनर्जी जैसी निजी रिफाइनरी कंपनियां अभी भी रूस से तेल खरीद रही हैं, लेकिन यह भी साफ है कि अगर अमेरिका का दबाव बढ़ा, तो उनके विकल्प भी सीमित हो सकते हैं। हालांकि, भारत में सरकारी रिफाइनरियों के पास कुल रिफाइनिंग क्षमता का 60% से ज्यादा नियंत्रण है, इसलिए उनकी नीति बाजार की दिशा तय करती है।
आर्थिक असर: मुनाफा घटेगा, लागत बढ़ेगी
एक वरिष्ठ तेल रिफाइनरी अधिकारी के मुताबिक, यह फैसला पूर्वानुमानित तो था, लेकिन इसका असर गहरा होगा। रूस से मिलने वाला तेल सस्ता था, जिससे रिफाइनरियों को लागत कम और मुनाफा ज़्यादा मिलता था। अब मध्य पूर्व और अफ्रीकी देशों से तेल महंगे दामों पर खरीदना पड़ेगा, जिससे न केवल कंपनियों की कमाई घटेगी, बल्कि घरेलू ईंधन की कीमतों पर भी असर पड़ सकता है।
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