फर्जी टीईटी और शैक्षिक प्रमाणपत्र
जांच में सामने आया है कि कई व्यक्तियों ने टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) और शैक्षिक अर्हता से जुड़े प्रमाणपत्रों में फर्जीवाड़ा कर नौकरी हासिल की। इनमें कुछ ऐसे शिक्षक भी हैं जो वर्ष 2010 से लगातार नौकरी कर रहे थे। यह स्पष्ट करता है कि यह कोई अचानक हुआ मामला नहीं, बल्कि लंबे समय से चल रही एक संगठित साजिश है, जो शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर गहरी चोट करती है।
कार्रवाई की शुरुआत और बढ़ता दबाव
बीएसए अजय कुमार के नेतृत्व में जब जांच तेज की गई तो एक के बाद एक फर्जी शिक्षक सामने आने लगे। जून 2025 में जमुनहा और हरिहरपुररानी क्षेत्रों से 13 फर्जी शिक्षक पकड़े गए थे। अब जुलाई में 6 और को बर्खास्त कर दिया गया। इनके खिलाफ संबंधित थानों में प्राथमिकी दर्ज कराई गई है और कई को जेल भी भेजा जा चुका है। पुलिस अब भी 54 फरार आरोपियों की तलाश में जुटी है।
कहां चूक गया सिस्टम?
सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन फर्जी शिक्षकों की नियुक्ति में विभागीय सत्यापन प्रणाली पूरी तरह विफल रही। काउंसलिंग और दस्तावेज सत्यापन की प्रक्रियाओं के बावजूद ऐसे जालसाज सरकारी नौकरी पाने में सफल हो गए। यह या तो घोर लापरवाही का मामला है या फिर अंदरूनी मिलीभगत की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
शिकायत के बाद ही कार्रवाई
ज्यादातर मामलों में कार्रवाई तब शुरू हुई जब किसी ने शिकायत की। यह व्यवस्था की निष्क्रियता को दर्शाता है। यदि विभाग समय रहते स्वतः संज्ञान लेकर जांच करता, तो आज जिले में ऐसे मामलों की संख्या शायद इतनी अधिक न होती। हालांकि विभाग द्वारा की जा रही कड़ी कार्रवाई से हड़कंप मच गया हैं।
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