हाल के दिनों में अमेरिका द्वारा भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाए जाने के बाद से बाजार में अस्थिरता बढ़ गई है। इस टैरिफ के कारण भारत का कुल शुल्क स्तर 50% तक पहुंच गया है, जो पहले से ही दबाव झेल रहे निर्यातकों के लिए एक बड़ा झटका है।
निवेशकों की घबराहट और बाजार की प्रतिक्रिया
अमेरिकी टैरिफ के जवाब में निवेशकों ने भारतीय बाजार से आंशिक रूप से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। विदेशी निवेशकों के इस रवैये ने रुपये को और कमजोर कर दिया है। कमजोर रुपया न सिर्फ आयात को महंगा बनाता है, बल्कि भारतीय कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को भी प्रभावित करता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ भारत और चीन आमने-सामने हैं।
युआन के मुकाबले भी रुपये की स्थिति नाजुक
रुपये की मुश्किलें केवल डॉलर तक सीमित नहीं हैं। चीनी युआन के मुकाबले भी रुपया शुक्रवार को 12.3307 तक गिर गया। यह न सिर्फ साप्ताहिक गिरावट में 1.2% और मासिक स्तर पर 1.6% की कमजोरी दिखाता है, बल्कि पिछले चार महीनों में 6% की गिरावट की तरफ भी इशारा करता है।
टैरिफ गैप और प्रतिस्पर्धात्मक असंतुलन
विशेषज्ञ मानते हैं कि डॉलर के मुकाबले और युआन के मुकाबले रुपये की गिरावट का एक बड़ा कारण अमेरिका द्वारा भारत और चीन के बीच टैरिफ में किया गया अंतर है। जबकि भारत पर कुल 50% का टैरिफ लागू हो गया है, चीन की वस्तुओं पर टैरिफ अभी भी 30% के स्तर पर स्थिर है।
IDFC फर्स्ट बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता के अनुसार, युआन के मुकाबले रुपये में गिरावट टैरिफ गैप को उजागर करती है, जिसका सीधा असर भारतीय निर्यात पर पड़ रहा है। खासकर वे सेक्टर जो चीन से सीधे मुकाबला करते हैं जैसे कपड़ा, इंजीनियरिंग उत्पाद और रसायन।
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