शीत युद्ध की वापसी? अमेरिका तैनात करेगा रूस के करीब परमाणु हथियार

न्यूज डेस्क। अमेरिका और रूस के बीच बढ़ता तनाव एक बार फिर वैश्विक शांति पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के निकट परमाणु हथियारों से लैस दो पनडुब्बियों की तैनाती की घोषणा की है। यह निर्णय सीधे तौर पर रूस की सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष दिमित्री मेदवेदेव के विवादास्पद और उकसाने वाले बयानों के जवाब में लिया गया है।

बयानबाज़ी से सैन्य तैनाती तक

ट्रंप ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर लिखा, "शब्दों का वजन होता है। वे कभी-कभी युद्ध जैसे अनचाहे परिणामों की ओर ले जा सकते हैं।" यह वक्तव्य न सिर्फ रूस को सीधी चेतावनी है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अमेरिका इस बार सिर्फ कूटनीति के भरोसे नहीं बैठा है।

ट्रंप का आदेश ऐसे समय में आया है जब मेदवेदेव ने सोशल मीडिया पर ट्रंप पर तीखा हमला बोलते हुए उन्हें 'अल्टीमेटम गेम' खेलने वाला कहा और यह भी जोड़ दिया कि रूस किसी भी तरह की धमकी को युद्ध की चेतावनी मानेगा। यह बयान और उसके जवाब में आया अमेरिकी कदम उस कूटनीतिक पतली रेखा को पार करता दिख रहा है, जो अब तक युद्ध को टालती आई थी।

तीसरे विश्व युद्ध की आहट?

ऐसी स्थिति में जब दुनिया पहले से ही यूक्रेन-रूस युद्ध, ईरान-इज़राइल तनाव और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका-चीन की खींचतान से जूझ रही है, परमाणु पनडुब्बियों की यह तैनाती एक नई और बेहद संवेदनशील मोर्चाबंदी है। विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट की याद दिलाता है, जब पूरी दुनिया कुछ ही कदम दूर परमाणु युद्ध से रह गई थी।

यह कोई साधारण सैन्य कदम नहीं है। अमेरिका की परमाणु पनडुब्बियां अत्याधुनिक तकनीक से लैस होती हैं और टॉमहॉक जैसी मिसाइलों से सुसज्जित होती हैं। ट्रंप ने अतीत में इन्हें "दुनिया के सबसे घातक हथियार" कहा है। ऐसी शक्तियों का किसी देश की सीमाओं के पास तैनात होना किसी भी स्तर पर केवल "रणनीतिक दबाव" नहीं कहा जा सकता।

वैश्विक सुरक्षा पर संकट

इस पूरे घटनाक्रम से वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था को भारी चुनौती मिली है। सवाल यह है कि क्या दुनिया फिर से एक ध्रुवीय शक्ति संघर्ष की ओर लौट रही है? या यह केवल एक रणनीतिक "शो ऑफ फोर्स" है, जो अंततः किसी समझौते पर खत्म होगा?

हालांकि ट्रंप ने कहा है कि यह कदम "उकसावेपूर्ण बयानों को रोकने" के लिए है, परंतु यह भी स्पष्ट है कि इस तैनाती से रूस-यूक्रेन संघर्ष और अधिक संवेदनशील हो जाएगा। परमाणु हथियारों की चर्चा, विशेष रूप से उनकी तैनाती, अब न केवल सैन्य, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक मोर्चे पर भी केंद्रबिंदु बन चुकी है।

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