यूपी में शिक्षामित्रों की गुहार: मानदेय में बढ़ोतरी कब होगी?

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत लगभग 1.43 लाख शिक्षामित्रों की हालत इन दिनों बेहद दयनीय होती जा रही है। हर महीने केवल ₹10,000 के मानदेय में गुजारा करना आज के महंगाई भरे दौर में किसी चुनौती से कम नहीं है। पिछले कई वर्षों से शिक्षामित्रों का मानदेय स्थिर है, और सरकार से की गई हर अपील आज भी आश्वासन के दायरे से बाहर नहीं निकल पाई है।

“आश्वासन बहुत मिले, अब क्रियान्वयन चाहिए”

शिक्षामित्रों की सबसे बड़ी शिकायत यही है कि सिर्फ वादे किए जाते हैं, अमल नहीं होता। वे कई बार शासन, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के सामने अपनी पीड़ा रख चुके हैं, लेकिन उनके हिस्से में केवल भरोसे की बातें आई हैं। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के प्रदेश मंत्री कौशल कुमार सिंह का कहना है कि बीते छह महीने से मुख्यमंत्री से मिलने का प्रयास किया जा रहा है ताकि समस्या को सीधे उनके सामने रखा जा सके, लेकिन अब तक कोई समय नहीं मिला है।

आर्थिक संकट और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां

वर्तमान में शिक्षामित्रों की आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि मूलभूत जरूरतें पूरी करना मुश्किल हो गया है। इन हालातों में कई शिक्षामित्र मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान हो चुके हैं। संघ का कहना है कि बड़ी संख्या में शिक्षामित्र बीमारियों से जूझ रहे हैं, लेकिन इलाज तक की व्यवस्था ठीक से नहीं हो पा रही है।

आयुष्मान योजना का लाभ अभी अधूरा

राज्य सरकार की ओर से आयुष्मान भारत योजना के तहत शिक्षामित्रों को स्वास्थ्य बीमा देने की बात कही गई थी, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है। न तो कार्ड बने हैं, न ही किसी जिले में इसकी प्रक्रिया स्पष्ट हुई है। इसी तरह, मूल विद्यालयों में वापसी की जो प्रक्रिया शिक्षामित्रों के लिए महत्वपूर्ण थी, वह भी अधर में लटकी हुई है।

संघ की मांगें

मुख्यमंत्री को संगठन के प्रतिनिधियों से मिलने के लिए समय देना चाहिए।

मानदेय को यथाशीघ्र बढ़ाया जाए, ताकि जीवन यापन सम्मानजनक हो सके।

आयुष्मान योजना के अंतर्गत सभी शिक्षामित्रों को लाभ दिया जाए।

मूल विद्यालय वापसी की प्रक्रिया शुरू की जाए।

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