ट्रंप प्रशासन की टकराव वाली नीति
हाल के महीनों में अमेरिका और भारत के रिश्तों में दिखने वाली खटास को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगाए और रूसी तेल खरीद पर आर्थिक दंड की धमकी दी। इस सबके बीच, अमेरिका द्वारा एफ-35 जेट की पेशकश एक ऐसा प्रस्ताव बन गया, जो दोस्ती की बजाय दबाव जैसा लगने लगा।
फरवरी में ट्रंप और मोदी की वाशिंगटन में हुई बैठक के दौरान एफ-35 की पेशकश की गई थी। अप्रैल में आने वाले अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भी इस प्रस्ताव को दोहराया, लेकिन भारत ने संयम बरतते हुए न तो इसपर त्वरित प्रतिक्रिया दी और न ही जल्दबाज़ी में कोई समझौता किया।
भारत का जवाब: न शब्द में रणनीति छुपी है
अब जबकि ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में सामने आया है कि भारत ने स्पष्ट रूप से एफ-35 खरीदने में रुचि न होने की बात अमेरिकी अधिकारियों से कह दी है, तो यह फैसला एक व्यापक संदेश देता है—भारत अब केवल खरीदार नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदार के रूप में देखा जाना चाहता है। मोदी सरकार का स्पष्ट रुख है कि भविष्य में किसी भी रक्षा सौदे में तकनीक ट्रांसफर, स्वदेशी निर्माण और फुल एक्सेस यानी सोर्स कोड तक पहुंच जैसे शर्तें पूरी होनी चाहिए। भारत सिर्फ हथियार नहीं खरीदना चाहता, वह रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता चाहता है।
क्या रूस बनेगा ‘वास्तविक’ डिफेंस पार्टनर?
रूस ने भारत के सामने वही प्रस्ताव रखा है जिसकी भारत को तलाश थी। एसयू-57 फिफ्थ जनरेशन फाइटर जेट के साथ रूस न केवल तकनीक ट्रांसफर की बात कर रहा है, बल्कि भारत में ही उत्पादन और सोर्स कोड देने को भी तैयार है। हाल ही में भारत के रक्षा सचिव ने भी इशारों में कहा था कि भारत अपने “दोस्त देश” से फिफ्थ जनरेशन लड़ाकू विमान खरीदने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। उन्होंने देश का नाम नहीं लिया, लेकिन अब जब अमेरिका को ‘ना’ कह दिया गया है, तो सारे संकेत रूस की ओर इशारा करते हैं।
0 comments:
Post a Comment