चीन की स्पेस ताकत से अमेरिका और भारत सतर्क

नई दिल्ली। 21वीं सदी की सबसे बड़ी रणनीतिक प्रतिस्पर्धा अब ज़मीन से उठकर अंतरिक्ष में पहुँच गई है। जहां कभी केवल विज्ञान और अनुसंधान का क्षेत्र समझा जाने वाला अंतरिक्ष, अब वैश्विक प्रभुत्व की होड़ का मैदान बन चुका है। इस रेस में चीन की तेजी से बढ़ती उपस्थिति ने अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ-साथ भारत को भी चौकन्ना कर दिया है।

चीन की स्पेस रणनीति

चीन ने हमेशा अपने स्पेस प्रोग्राम को "शांतिपूर्ण और नागरिक उपयोग" के लिए बताया है, लेकिन हालिया तकनीकी विकास और उसकी गति ने इस दावे पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिन तकनीकों पर चीन काम कर रहा है – जैसे रीयूजेबल स्पेसक्राफ्ट, एंटी-सैटेलाइट हथियार, ISR (इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनिसेंस) सैटेलाइट्स – वे सीधे-सीधे सैन्य उद्देश्यों के लिए अनुकूल हैं।

BeiDou और PLA की गठजोड़

चीन का खुद का नेविगेशन सिस्टम BeiDou अब वैश्विक कवरेज में आ चुका है, जिसमें करीब 60 सैटेलाइट्स शामिल हैं। यह सिर्फ एक नेविगेशन सिस्टम नहीं, बल्कि एक निगरानी और नियंत्रण तंत्र बनता जा रहा है। PLA इस नेटवर्क के ज़रिए अमेरिका के GPS से भी अधिक सटीक डेटा प्राप्त कर पा रही है, विशेष रूप से एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में। रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन ने पाकिस्तान को भारत के सैन्य ठिकानों की रीयल-टाइम जानकारी भी दी है।

स्पेस में चीनी इंटरनेट: Starlink का जवाब

चीन ने Elon Musk की स्टारलिंक योजना के समान G60/Qianfan और Guowang नामक दो विशाल लो अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट नेटवर्क प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। इनका उद्देश्य युद्धकाल में सुरक्षित और व्यापक कनेक्टिविटी देना है – ठीक वैसे ही जैसे स्टारलिंक ने यूक्रेन में किया। ये नेटवर्क PLA को युद्ध के दौरान संचार और डेटा ट्रांसमिशन में अद्वितीय बढ़त दिला सकते हैं।

ISR सैटेलाइट्स और डॉगफाइटिंग क्षमता

Yaogan, Gaofen और TJS जैसे सैटेलाइट्स ISR क्षमताओं से लैस हैं और PLA को दुश्मन की हर गतिविधि पर नज़र रखने की सुविधा देते हैं। वहीं, Shijian और Shiyan सैटेलाइट्स ‘डॉगफाइटिंग’ जैसी क्षमताओं से लैस बताए जाते हैं – यानी ये अन्य सैटेलाइट्स के करीब जाकर उन्हें ट्रैक, बाधित या नष्ट कर सकते हैं। अमेरिका की वायुसेना इस तकनीक को चीन की "असाधारण आक्रामक सैन्य क्षमता" का संकेत मानती है।

सीक्रेट स्पेसक्राफ्ट Shenlong और टेंग्युन की भूमिका

चीन ने हाल के वर्षों में Shenlong (संभावित नाम) नामक रीयूजेबल स्पेसक्राफ्ट से तीन मिशन पूरे किए हैं। यह X-37B की तरह काम करता है और भविष्य में छोटे सैन्य सैटेलाइट्स को लॉन्च करने, दुश्मन सैटेलाइट्स को निशाना बनाने या हाईपरसोनिक तकनीक के परीक्षण के लिए इस्तेमाल हो सकता है। वहीं, Tengyun नामक एक दो-चरणीय रीयूजेबल विमान 2030 तक लॉन्च होने की योजना में है, जो चीन की स्पेस युद्ध क्षमता को और बढ़ा देगा।

भारत और अमेरिका की चिंता: क्यों खतरा असली है?

भारत पहले ही चीनी सैटेलाइट नेटवर्क की घुसपैठ और पाकिस्तान को दी गई जानकारियों से चिंतित है। भारत की सेना अब अंतरिक्ष-आधारित निगरानी और साइबर-स्पेस डिफेंस पर ध्यान दे रही है। वहीं, अमेरिका को डर है कि अगर चीन इसी रफ्तार से बढ़ता रहा, तो वह 2030 तक अमेरिकी स्पेस टेक्नोलॉजी की बराबरी कर सकता है – या उससे भी आगे निकल सकता है।

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