1. वैश्विक व्यापार पर सीधा असर
अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश है। जब अमेरिका किसी उत्पाद पर टैरिफ बढ़ाता है, तो उस देश की कंपनियों को भारी झटका लगता है जो अमेरिका को निर्यात करती हैं। इससे उन देशों की अर्थव्यवस्था पर दबाव आता है और वैश्विक व्यापार में असंतुलन पैदा होता है।
2. आपूर्ति श्रृंखलाओं में रुकावट
आज की दुनिया में उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाएं आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं। अमेरिका जब किसी देश या उत्पाद पर टैरिफ लगाता है, तो उसकी वजह से वैश्विक सप्लाई चेन में रुकावट आती है। इससे कच्चे माल से लेकर तैयार माल तक की लागत बढ़ जाती है, जिसका असर अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ता है।
3. निवेश और बाजारों में अस्थिरता
टैरिफ नीतियों के बदलने से निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ जाती है। इससे शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव आता है, खासकर विकासशील देशों में जहां विदेशी निवेश एक प्रमुख स्त्रोत होता है। अमेरिका के टैरिफ निर्णयों के बाद अक्सर दुनियाभर के शेयर बाजारों में गिरावट देखी जाती है।
4. प्रतिशोधी टैरिफ और व्यापार युद्ध
जब अमेरिका टैरिफ बढ़ाता है, तो प्रभावित देश भी प्रतिशोध में टैरिफ बढ़ाते हैं। इससे 'व्यापार युद्ध' की स्थिति बन जाती है, जैसा कि अमेरिका और चीन के बीच देखने को मिला। ऐसे व्यापार युद्ध न केवल दोनों देशों को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि पूरी दुनिया में आर्थिक सुस्ती ला सकते हैं।
5. विकासशील देशों पर विशेष दबाव
अमेरिकी टैरिफ नीति का सबसे ज्यादा असर उन विकासशील देशों पर पड़ता है जो अमेरिका को वस्त्र, कृषि उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में निर्यात करते हैं। टैरिफ बढ़ने से इन देशों के रोजगार, उत्पादन और विदेशी मुद्रा आय पर सीधा असर होता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और कमजोर हो सकती है।
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