बिहार में 'अनुकंपा' पर भर्ती को लेकर बड़ा अपडेट

पटना। बिहार में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों और कर्मचारियों की सेवाकाल में मृत्यु होने की स्थिति में उनके आश्रितों को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने की प्रक्रिया पहले से लागू है। लेकिन हाल ही में एक नया मामला सामने आया है, जिससे राज्य के कई जिलों में अनुकंपा नियुक्ति की प्रक्रिया अटक गई है। मामला इस बात को लेकर है कि क्या जिन अभ्यर्थियों ने मैट्रिक या इंटरमीडिएट में 45 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त किए हैं, उन्हें भी लिपिक या परिचारी पद पर अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती है या नहीं।

नियमावली में क्या है?

बिहार सरकार की 2025 की नवीनतम नियमावली के अनुसार:विद्यालय लिपिक पद के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता इंटरमीडिएट (12वीं) पास होना अनिवार्य है, साथ ही उसमें कम-से-कम 45 प्रतिशत अंक होना भी आवश्यक है। जबकि विद्यालय परिचारी पद के लिए न्यूनतम योग्यता मैट्रिक (10वीं) है, जिसमें भी 45 प्रतिशत अंक आवश्यक हैं।

इन नियमों के तहत अब तक जिलों में अनुकंपा नियुक्तियों की प्रक्रिया संचालित हो रही है। लेकिन कई मामलों में यह देखा गया है कि आश्रित अभ्यर्थी इन न्यूनतम अंकों की शर्त को पूरा नहीं करते हैं, जिस कारण उनकी नियुक्ति रोकी जा रही है।

शिक्षा विभाग ने उठाया अहम सवाल

मामले की गंभीरता को समझते हुए शिक्षा विभाग ने सामान्य प्रशासन विभाग से स्पष्ट मार्गदर्शन की मांग की है। माध्यमिक शिक्षा उपनिदेशक अब्दुस सलाम अंसारी द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र में यह पूछा गया है कि क्या अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में भी वही 45% अंक की शर्त लागू की जाए, जो सामान्य नियुक्तियों में की जाती है?

शिक्षा विभाग का मानना है कि अनुकंपा नियुक्ति एक मानवीय और विशेष स्थिति होती है, जिसमें मृतक कर्मचारी के परिवार को तत्काल राहत देने का उद्देश्य रहता है। ऐसे में क्या न्यूनतम शैक्षणिक अंकों की बाध्यता को उसी कठोरता से लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि सामान्य नियुक्तियों में होता है?

जिलों में फंसी हुई हैं नियुक्तियां

इस अस्पष्टता के कारण कई जिलों में अनुकंपा नियुक्ति की फाइलें अटकी हुई हैं। आश्रित अभ्यर्थी, जिनके अंक 45% से कम हैं, वे लगातार कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन तय दिशा-निर्देशों के अभाव में अधिकारी कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हैं।

अब सारी निगाहें सामान्य प्रशासन विभाग के उस निर्णय पर टिकी हैं, जो इस संदर्भ में मार्गदर्शन देगा। यदि विभाग यह स्पष्ट कर देता है कि अनुकंपा नियुक्ति में 45% अंक की अनिवार्यता नहीं होगी, तो बड़ी संख्या में प्रभावित परिवारों को राहत मिल सकती है। वहीं यदि यह नियम अनिवार्य माना गया, तो बहुत से आश्रित इस सुविधा से वंचित रह जाएंगे।

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