चीन की यह नई तकनीक बैलिस्टिक मिसाइलों को पृथ्वी की निचली कक्षा तक निशाना बनाने में सक्षम हो सकती है। इसे “डबल-बैरल सैटेलाइट हंटर” भी कहा जा रहा है, जो न केवल मिसाइलों को मार गिराने की क्षमता रखता है, बल्कि उपग्रहों को भी खत्म कर सकता है। इसकी मारक दूरी लगभग 500 किलोमीटर तक बताई गई है, जो इसे चीन के सबसे आधुनिक और खतरनाक मिसाइल डिफेंस सिस्टम की श्रेणी में लाती है।
ब्रह्मोस मिसाइल और HQ-29 का फर्क
भारत का ब्रह्मोस मिसाइल एक क्रूज मिसाइल है, जो Mach 2.8 से Mach 3 की रफ्तार से उड़ती है और जमीन के बहुत करीब से उड़ान भरती है। इसकी उड़ान “टेरेन-हगिंग” होती है, यानी यह जमीन की बनावट को फॉलो करती है, जिससे इसे ट्रैक करना बेहद मुश्किल हो जाता है। वहीं, HQ-29 खासकर ऊंचाई से उड़ने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने के लिए डिजाइन किया गया है।
HQ-29 ब्रह्मोस को रोक पाएगा?
विशेषज्ञों की राय में, HQ-29 के लिए ब्रह्मोस को रोकना बिल्कुल नामुमकिन नहीं, लेकिन बहुत ही मुश्किल होगा। इसका कारण ब्रह्मोस की तेज रफ्तार, उड़ान की निचली ऊंचाई और मिसाइल के रास्ते में अचानक बदलाव की क्षमता है। अगर HQ-29 को ब्रह्मोस के टर्मिनल स्टेज में पहले ही पकड़ लिया जाए और इसे लो-एल्टीट्यूड पर मिसाइल को रोकने की क्षमता दी गई हो, तभी इसे इंटरसेप्ट किया जा सकता है। वरना ब्रह्मोस मिसाइल इसे चकमा देकर निकल सकती है।
भारत की अगली पीढ़ी ब्रह्मोस
भारत ब्रह्मोस-एनजी और ब्रह्मोस-2 जैसे अगली पीढ़ी के मिसाइल सिस्टम पर काम कर रहा है, जो पहले से भी तेज़ और ज्यादा उन्नत होंगे। ब्रह्मोस-2 तो हाइपरसोनिक गति तक पहुंचने वाला है, जिसे रोकना किसी भी एयर डिफेंस सिस्टम के लिए और भी बड़ा चैलेंज होगा।
क्या चीन का HQ-29 ब्रह्मोस को रोक पाएगा?
चीन का HQ-29 सिस्टम अपनी टेक्नोलॉजी में काफी उन्नत जरूर है, लेकिन ब्रह्मोस जैसी तेज और स्मार्ट मिसाइल को रोकना आसान नहीं होगा। यह मुकाबला तकनीक, रडार की पकड़, मिसाइल की उड़ान प्रोफाइल और समय पर इंटरसेप्शन जैसी कई चीजों पर निर्भर करेगा। फिलहाल, ब्रह्मोस मिसाइल को रोकना HQ-29 के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
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