भारत-रूस मिलकर करेंगे ये काम, अमेरिका सन्न!

नई दिल्ली। भारत और रूस के बीच आर्थिक और रणनीतिक रिश्तों की गहराई अब नए आयाम छू रही है। ताजा घटनाक्रम में दोनों देशों ने रेयर अर्थ मिनरल्स जैसे तांबा, लिथियम, कोबाल्ट और निकल की खोज और उत्पादन में साझेदारी करने का ऐलान किया है। यह सिर्फ एक औद्योगिक कदम नहीं, बल्कि बदलते वैश्विक शक्ति संतुलन की ओर इशारा करता है।

रेयर अर्थ मिनरल्स आज के दौर में ‘नए तेल’ माने जा रहे हैं। इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, एडवांस बैटरियां, पवन ऊर्जा, और हाई-टेक डिवाइसेज़ के लिए इनकी मांग तेज़ी से बढ़ रही है। इन खनिजों पर नियंत्रण का मतलब है आर्थिक ताकत, तकनीकी प्रभुत्व और ऊर्जा सुरक्षा। भारत और रूस की यह साझेदारी इस दिशा में एक मजबूत कदम है।

भारत की प्राथमिकता: आत्मनिर्भरता और रणनीतिक संतुलन

भारत, जो लंबे समय से चीन पर खनिज आपूर्ति के मामले में निर्भर रहा है, अब अपने स्रोतों को विविध बनाना चाहता है। रूस के साथ यह करार न केवल संसाधनों की आपूर्ति सुरक्षित करेगा, बल्कि भारत को क्लीन एनर्जी ट्रांज़िशन में आत्मनिर्भर बनने में भी मदद देगा। इसके अलावा, यह कदम ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों को भी मज़बूती देता है।

रणनीतिक असहमति या दबाव की राजनीति?

अमेरिका को इस साझेदारी से स्पष्ट तौर पर असहजता हो रही है। उसने भारत से आने वाले उत्पादों पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है, जिससे कुल आयात शुल्क 50% तक पहुंच गया है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि भारत रूस से तेल और अन्य वस्तुएं खरीदकर रूस की युद्ध-प्रेरित अर्थव्यवस्था को मज़बूती दे रहा है।

हालांकि, भारत का रुख स्पष्ट है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बयान में साफ कहा कि भारत अपने किसानों, मछुआरों और आम नागरिकों के हितों के साथ कभी समझौता नहीं करेगा। भारत किसी बाहरी दबाव में आकर अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता से समझौता करने को तैयार नहीं।

क्या अमेरिका भारत पर दबाव बना पाएगा?

हालात साफ संकेत दे रहे हैं कि भारत अब "गुटनिरपेक्ष लेकिन रणनीतिक" नीति अपना रहा है। वह अमेरिका, रूस और अन्य देशों के साथ अपने-अपने हितों के आधार पर रिश्ते बना रहा है। भारत अब उस दौर में नहीं है जब वह केवल पश्चिम की शर्तों पर चले। अमेरिका का टैरिफ बढ़ाना एक प्रकार का आर्थिक दबाव है, लेकिन भारत की प्रतिक्रिया से जाहिर होता है कि वह इन नीतियों से डरने वाला नहीं।

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