अलास्का: जो कभी था रूस का हिस्सा
आज जो अलास्का अमेरिका का एक समृद्ध और सामरिक दृष्टि से अहम राज्य है, वह कभी रूस का उपनिवेश था। 18वीं सदी में रूस ने इस बर्फीले इलाके को अपने नियंत्रण में लिया था, लेकिन 19वीं सदी के मध्य तक स्थितियाँ बदलने लगीं। रूस को अलास्का संभालना महंगा, कठिन और अप्रभावी लगने लगा।
कठोर जलवायु, दूरस्थता, जनसंख्या की कमी और प्रशासनिक चुनौतियाँ लगातार रूस के लिए सिरदर्द बनती जा रही थीं। इसी बीच क्रीमियन युद्ध (1853-1856) ने रूसी खजाने पर भारी दबाव डाला। आर्थिक संकट से जूझ रहे रूस को लगा कि अलास्का अब बोझ बन चुका है और यहीं से शुरू हुई इतिहास की सबसे चर्चित "अलास्का बिक्री" की कहानी।
7.2 मिलियन डॉलर में बिका था पूरा अलास्का
1867 में अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री विलियम एच. सीवर्ड ने रूस के साथ सौदे की बातचीत की। आखिरकार, रूस ने 30 मार्च 1867 को केवल 7.2 मिलियन डॉलर (आज के हिसाब से लगभग 63 करोड़ रुपये) में अलास्का अमेरिका को बेच दिया। यानी प्रति एकड़ की कीमत करीब 2 सेंट जो किसी भी ज़मीन के लिए हास्यास्पद मानी जाती थी।
यह सौदा उस समय कई अमेरिकियों को भी पागलपन लगा। लोगों ने इसे “सीवर्ड्स फॉली” यानी “सीवर्ड की मूर्खता” कहकर मज़ाक उड़ाया। उन्हें लगा था कि सरकार ने बर्फीले बियाबान पर पैसा बर्बाद कर दिया। लेकिन समय ने कुछ और ही साबित किया।
अलास्का: अमेरिका की सोने की खान
जिस जमीन को कई लोग बेकार समझ बैठे थे, वही बाद में अमेरिका के लिए खजाने की चाबी बन गई। अलास्का में बाद में सोना, तेल, गैस, कोयला और अन्य खनिज संसाधनों की भरमार पाई गई। इसके अलावा इसकी रणनीतिक स्थिति ने भी इसे सैन्य दृष्टि से बेहद अहम बना दिया खासतौर पर शीत युद्ध के दौर में।
आज अलास्का अमेरिका की ऊर्जा जरूरतों का एक प्रमुख स्रोत है। पर्यटन से लेकर रक्षा तक, यह राज्य कई क्षेत्रों में आर्थिक और रणनीतिक योगदान देता है। इस प्रकार, जिसे कभी "आइसबॉक्स" कहा गया था, वह अमेरिका की ताकत का स्तंभ बन गया।
रूस ने फिर क्यों नहीं जताया कोई दावा?
रूस ने अलास्का बेचने के बाद कभी इसे औपचारिक रूप से वापस पाने की कोशिश नहीं की। इसकी कई वजहें हैं:
कानूनी रूप से वैध संधि: 1867 की संधि पूरी तरह वैध और स्थायी थी।
राजनीतिक प्राथमिकताएँ: रूस की प्राथमिकताएं यूक्रेन, जॉर्जिया जैसे समीपवर्ती क्षेत्र रहे हैं।
अलास्का की स्थिति: अमेरिका की मजबूत सैन्य और नागरिक उपस्थिति ने इसे रूस के लिए अप्राप्य बना दिया।
शीत युद्ध के दौरान भी, जब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव चरम पर था, तब भी अलास्का पर दावा नहीं किया गया। आज भी रूस की विदेश नीति में अलास्का कहीं नहीं है।
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