1 .अमेरिका: SLBM तकनीक में सबसे आगे
संयुक्त राज्य अमेरिका के पास SLBM मिसाइलों का सबसे बड़ा और उन्नत भंडार है। Trident II D5 मिसाइलें अमेरिकी Ohio-class पनडुब्बियों से दागी जाती हैं। इनकी मारक क्षमता करीब 12,000 किमी तक है और यह एक साथ कई परमाणु वारहेड्स ले जाने में सक्षम हैं। अमेरिका की यह क्षमता उसे वैश्विक सैन्य संतुलन में शीर्ष स्थान पर बनाए रखती है।
2 .रूस: महासागर की गहराइयों से जवाब देने को तैयार
रूस ने SLBM प्रणाली को अपनी रणनीतिक सैन्य नीति में अहम स्थान दिया है। R-29RMU2 Sineva और R-29R जैसी मिसाइलें इसकी Delta-IV और Borei-class पनडुब्बियों में तैनात हैं। इनकी रेंज 8,000 से 11,000 किमी तक है। रूस की यह ताकत, अमेरिका के समुद्री दबदबे को टक्कर देती है।
3 .चीन: समुद्री क्षमता में तेजी से विस्तार
चीन ने हाल के वर्षों में अपनी SLBM शक्ति में तेजी से विस्तार किया है। Jin-class पनडुब्बियों से दागी जाने वाली JL-2 और अब उन्नत JL-3 मिसाइलें उसकी सैन्य रणनीति में अहम भूमिका निभा रही हैं। इनकी अनुमानित रेंज 7,000 से 10,000 किमी तक है, जिससे चीन अमेरिकी मुख्यभूमि को भी टारगेट कर सकता है।
4 .फ्रांस: स्वतंत्र और प्रभावशाली परमाणु नीति
फ्रांस की SLBM क्षमता पूरी तरह से स्वदेशी है। Triomphant-class पनडुब्बियों से दागी जाने वाली M51 मिसाइलें उसकी समुद्री रणनीतिक शक्ति का आधार हैं। यह मिसाइलें लगभग 10,000 किमी दूर तक निशाना साध सकती हैं।
5 .ब्रिटेन: साझेदारी से मिली सुरक्षा
ब्रिटेन की Vanguard-class पनडुब्बियों में भी Trident II D5 मिसाइलें तैनात हैं, जो अमेरिका के सहयोग से प्राप्त होती हैं। ब्रिटेन का SLBM कार्यक्रम NATO ढांचे में चलता है और यह उसकी संपूर्ण परमाणु प्रतिरोध नीति का एकमात्र स्तंभ है।
6 .भारत: उभरती समुद्री परमाणु शक्ति
भारत ने बीते कुछ वर्षों में SLBM तकनीक में महत्वपूर्ण प्रगति की है। INS Arihant और अन्य पनडुब्बियों से दागी जाने वाली K-15 (Sagarika) और K-4 मिसाइलें इसकी नई क्षमता का प्रमाण हैं। K-4 की रेंज करीब 3,500 किमी तक है। भारत का यह कदम उसे न्यूक्लियर ट्रायड की ओर पूर्णता की दिशा में ले जाता है।
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