VL-SRSAM मिसाइल: भारत की सुरक्षा को नई धार, चीन सन्न

नई दिल्ली।  भारत ने समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में एक और बड़ी छलांग लगाई है। भारतीय नौसेना के प्रमुख विमानवाहक पोत INS विक्रमादित्य पर अब इज़रायली बराक-1 मिसाइल प्रणाली की जगह स्वदेशी वर्टिकल लॉन्च शॉर्ट रेंज सरफेस-टू-एयर मिसाइल (VL-SRSAM) तैनात की जाएगी। यह कदम भारत की आत्मनिर्भर रक्षा नीति और तकनीकी सशक्तिकरण का ठोस प्रमाण है।

स्वदेशी मिसाइल, वैश्विक संदेश

DRDO द्वारा विकसित यह मिसाइल सिस्टम 2026-27 तक INS विक्रमादित्य पर पूर्ण रूप से तैनात कर दिया जाएगा। इससे भारतीय नौसेना की हवाई रक्षा क्षमता में गुणात्मक और रणनीतिक वृद्धि होगी। यह सिर्फ एक तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी है — भारत अब अपनी समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए स्वदेशी तकनीक पर भरोसा कर रहा है।

 VL-SRSAM की मुख्य विशेषताएं

1 .बेहतर रेंज: VL-SRSAM की 30-40 किमी की मारक दूरी, बराक-1 की 12 किमी सीमा से कहीं अधिक है। यह 360 डिग्री कोण में हवाई खतरों को ट्रैक और नष्ट कर सकती है।

2 .आसान तैनाती: 170 किलोग्राम वज़न और लगभग 3.9 मीटर लंबाई के साथ, यह मिसाइल नौसेना के अन्य जहाजों, जैसे नेक्स्ट जेनरेशन मिसाइल वेसल्स (NGMV) पर भी तैनात की जा सकती है।

3 .रडार-प्रूफ तकनीक: इसमें स्वदेशी रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर और मल्टी-फंक्शन रडार (MFR) लगा है, जो इसे रडार की पकड़ से बाहर रखता है और दुश्मन को चौंकाने में सक्षम बनाता है।

4 .समुद्री सुरक्षा के अनुकूल: यह मिसाइल विशेष रूप से कम ऊंचाई पर उड़ने वाली सी-स्किमिंग मिसाइलों को रोकने के लिए डिज़ाइन की गई है — ये वही हथियार हैं जो विमानवाहक पोतों के लिए सबसे बड़ा खतरा होते हैं।

परीक्षण में मिली सफलता

26 मार्च 2025 को ओडिशा के चांदीपुर स्थित इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (ITR) से हुए परीक्षण में VL-SRSAM ने कम ऊंचाई पर एक हाई-स्पीड लक्ष्य को सटीकता से नष्ट किया। इस परीक्षण ने इसकी युद्धक क्षमता और विश्वसनीयता को सिद्ध कर दिया। इससे पहले, 2024 में भी दो सफल परीक्षण किए गए थे, जिनमें इसके प्रॉक्सिमिटी फ्यूज और सीकर सिस्टम को युद्ध स्थितियों के अनुरूप परखा गया।

INS विक्रमादित्य: अब और भी अभेद्य

INS विक्रमादित्य, भारतीय नौसेना का सबसे शक्तिशाली विमानवाहक पोत है। VL-SRSAM की तैनाती से यह पोत अब हवाई खतरों के विरुद्ध कहीं अधिक सुरक्षित हो जाएगा। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के बढ़ते समुद्री प्रभाव के बीच यह निर्णय रणनीतिक रूप से निर्णायक माना जा रहा है।

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