1. राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी गोपनीयता
F-22 रैप्टर में अमेरिका की कई अत्याधुनिक तकनीकें मौजूद हैं, जैसे स्टील्थ (रडार से बचाव), सुपरक्रूज़ (बिना आफ्टरबर्नर के सुपरसोनिक गति), उन्नत एवियोनिक्स और सेंसर फ्यूजन। अमेरिकी सरकार को यह डर है कि यदि यह तकनीक किसी अन्य देश के हाथों में चली जाती है, तो वह उसके खिलाफ या उसके प्रतिस्पर्धियों को बेची जा सकती है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।
2. अमेरिकी कानून द्वारा बिक्री पर प्रतिबंध
अमेरिकी कांग्रेस ने एक विशेष कानून पारित किया हैं, जिसके अनुसार F-22 रैप्टर को किसी भी विदेशी देश को बेचना प्रतिबंधित कर दिया गया। इस कानून का उद्देश्य अमेरिका की सैन्य तकनीक की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। जब जापान और इजरायल जैसे करीबी सहयोगियों ने F-22 खरीदने की इच्छा जताई, तब भी यह प्रतिबंध बरकरार रहा।
3. अमेरिका का रणनीतिक बढ़त बनाए रखना
F-22 रैप्टर को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वह किसी भी हवाई युद्ध में अमेरिका को रणनीतिक बढ़त दिला सके। यदि यही विमान किसी अन्य देश के पास भी होता, तो अमेरिका की यह बढ़त कम हो सकती थी। इसलिए अमेरिका चाहता है कि यह तकनीक सिर्फ उसी के पास रहे और उसे वैश्विक सैन्य श्रेष्ठता में फायदा मिले।
4. उत्पादन बंद हो चुका है
2009 में अमेरिका ने F-22 रैप्टर का उत्पादन बंद कर दिया था। इसकी एक वजह यह भी थी कि इसका निर्माण बहुत महंगा था — एक विमान की कीमत $150 मिलियन से ज्यादा थी। इसके बजाय अमेरिका ने अपने संसाधन नए और सस्ते विकल्प जैसे F-35 प्रोग्राम में लगाने का फैसला किया। चूंकि अब नए F-22 नहीं बनते, इसलिए उनकी बिक्री का सवाल भी नहीं उठता।
5. अमेरिका के पास अन्य एक्सपोर्ट विकल्प हैं
हालांकि अमेरिका F-22 नहीं बेचता, लेकिन उसने F-35 लाइटनिंग II जैसे आधुनिक फाइटर जेट कई देशों को बेचे हैं। F-35 में भी अत्याधुनिक तकनीक है, लेकिन इसमें F-22 जैसी रणनीतिक गोपनीयता नहीं है। इस तरह अमेरिका तकनीकी नियंत्रण बनाए रखते हुए सहयोगी देशों को आधुनिक हथियार मुहैया कराता है।
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