भारत का गेमचेंजर 'Project-77': दुश्मनों की उड़ी नींद

नई दिल्ली। भारत अब सिर्फ अपनी सीमाओं की रक्षा नहीं कर रहा, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी निर्णायक मौजूदगी दर्ज कराने की तैयारी में है। भारतीय नौसेना ने भविष्य की चुनौतियों से निपटने और समुद्री ताकत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए 'Project-77' की शुरुआत की है। यह कोई आम रक्षा परियोजना नहीं, बल्कि एक स्ट्रैटेजिक मास्टरप्लान है, जो भारत को समुद्र की गहराइयों से हाइपरसोनिक हमले करने में सक्षम बनाएगा।

हाइपरसोनिक मिसाइलों की जरूरत क्यों पड़ी?

पिछले कुछ दशकों में भारत की पनडुब्बियों में जो मिसाइलें लगाई गई थीं, वे ज्यादातर सब-सोनिक श्रेणी की थीं—यानि आवाज से धीमी गति वाली। ये मिसाइलें सतह के पास उड़ती थीं, जिससे दुश्मन के रडार उन्हें आसानी से पकड़ लेते थे और समय रहते जवाबी कार्रवाई कर लेते थे। यही भारत की बड़ी कमजोरी थी।

आज के दौर में जहां चीन जैसे देश हाइपरसोनिक तकनीक में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, वहां सब-सोनिक हथियार पुराने पड़ने लगे हैं। ऐसे में भारतीय नौसेना अब उन मिसाइलों पर भरोसा करना चाहती है जो आवाज से कई गुना तेज हों और रडार को चकमा देकर दुश्मन के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसी सटीक मार कर सकें।

क्या है Project-77?

'Project-77' भारत का एक अत्यंत गोपनीय और रणनीतिक महत्व का रक्षा मिशन है, जिसके तहत 6 न्यूक्लियर-पावर्ड अटैक सबमरीन (SSN) तैयार की जा रही हैं। इन पनडुब्बियों की खास बात यह है कि: ये पूरी तरह से भारत में बनाई जाएंगी—DRDO और L&T जैसी संस्थाओं की मदद से। ये अरिहंत-क्लास से अलग होंगी और मुख्य रूप से आक्रमण के लिए बनाई जाएंगी, न कि सिर्फ प्रतिरोध के लिए। इनसे हाइपरसोनिक और सुपरसोनिक मिसाइलें दागी जा सकेंगी—वो भी पानी के नीचे से और बिना किसी को खबर हुए।

हिंद-प्रशांत में भारत की बढ़ती पकड़

DRDO इस समय ऐसी हाइपरसोनिक मिसाइलें विकसित कर रहा है जिनकी रेंज 1,500 से 2,000 किलोमीटर तक होगी। इसका मतलब ये है कि भारत की पनडुब्बियां बिना दुश्मन की नजरों में आए, उसके गढ़ को भी निशाना बना सकती हैं। इससे भारत को सिर्फ सैन्य ताकत ही नहीं, बल्कि रणनीतिक बढ़त भी मिलेगी—खासकर चीन और पाकिस्तान जैसे विरोधियों के मुकाबले।

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