1. अमेरिका (USA)
अंतरिक्ष संस्था: NASA और निजी कंपनियाँ (SpaceX, Blue Origin)
क्रोजनिक तकनीक की शुरुआत: 1960 के दशक में, Saturn V रॉकेट के ज़रिए
अमेरिका ने सबसे पहले क्रोजनिक इंजन को चंद्रमा पर मनुष्य भेजने के लिए इस्तेमाल किया था। NASA का F-1 और J-2 इंजन Apollo Missions में प्रयुक्त हुआ। आज SpaceX के Raptor Engines और Blue Origin के BE-3 और BE-4 इंजन क्रोजेनिक प्रौद्योगिकी में सबसे उन्नत माने जाते हैं। अमेरिका न केवल इसे सैन्य और अंतरिक्ष मिशनों में इस्तेमाल करता है, बल्कि अन्य देशों को भी प्रक्षेपण सेवाएं देता है।
2. रूस (Russia)
अंतरिक्ष संस्था: Roscosmos
क्रोजनिक तकनीक की शुरुआत: सोवियत संघ के ज़माने में, 1960s में
रूस (पूर्व में USSR) क्रोजनिक तकनीक का दूसरा सबसे पुराना खिलाड़ी है। उनका RD-0120 इंजन, जो Energia Launch Vehicle में प्रयोग हुआ, शक्तिशाली क्रोजनिक इंजनों में से एक रहा है। रूस आज भी दुनिया को तरल रॉकेट इंजन सप्लाई करता है (जैसे RD-180, जिसे अमेरिका ने खरीदा)। उनकी Angara और Proton शृंखला के रॉकेट क्रोजनिक टेक्नोलॉजी पर आधारित हैं।
3. फ्रांस/यूरोप (France / European Space Agency)
अंतरिक्ष संस्था: European Space Agency (ESA), नेतृत्व में फ्रांस की ArianeGroup
क्रोजनिक तकनीक की शुरुआत: 1970s
यूरोप ने Ariane रॉकेट श्रृंखला में क्रोजनिक तकनीक का प्रयोग कर अंतरिक्ष में बड़ी छलांग लगाई। उनका सबसे प्रसिद्ध इंजन है Vulcain, जो Ariane-5 और अब नई पीढ़ी के Ariane-6 रॉकेट में प्रयोग होता है। ESA की यह तकनीक मुख्यतः वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण के लिए प्रसिद्ध है, और फ्रांस इसकी इंजीनियरिंग का मुख्य केंद्र है।
4. चीन (China)
अंतरिक्ष संस्था: CNSA (China National Space Administration)
क्रोजनिक तकनीक की शुरुआत: 1990s
चीन ने अपने Long March (Chang Zheng) रॉकेट श्रृंखला के लिए YF-73 और YF-75 जैसे क्रोजनिक इंजन विकसित किए हैं। अब वो YF-77 जैसे शक्तिशाली इंजन पर काम कर रहे हैं, जो चीन के चंद्र और मंगल मिशनों का आधार बनेंगे। चीन ने क्रोजनिक तकनीक को रणनीतिक रूप से उपयोग करते हुए अंतरिक्ष में एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर शक्ति बनने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है।
5. जापान (Japan)
अंतरिक्ष संस्था: JAXA (Japan Aerospace Exploration Agency)
क्रोजनिक तकनीक की शुरुआत: 1990s
जापान का LE-5 और LE-7 इंजन उसके H-IIA और H-IIB रॉकेटों में उपयोग होता है। जापान की तकनीक उच्च दक्षता और विश्वसनीयता के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि वे वाणिज्यिक प्रक्षेपण में बहुत आगे नहीं हैं, लेकिन उनकी तकनीक वैश्विक मानकों पर खरी उतरती है। जापान अब H3 रॉकेट के माध्यम से नई पीढ़ी के प्रक्षेपण पर केंद्रित है।
6. भारत (India)
अंतरिक्ष संस्था: ISRO (Indian Space Research Organisation)
क्रोजनिक तकनीक की शुरुआत: 2000s
पहली सफलता: 2014 (GSLV-D5)
भारत ने अन्य देशों से तकनीक मिलने में असफलता के बाद, क्रोजनिक इंजन को स्वदेशी रूप से विकसित करने का निर्णय लिया। इसे विकसित करने में दो दशक लगे। CE-7.5 और अब CE-20 इंजन, भारत की GSLV Mk II और GSLV Mk III (LVM-3) का हिस्सा हैं। आज भारत इसी तकनीक से चंद्रयान-3 जैसी सफलताएं प्राप्त कर चुका है और वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण में प्रमुख खिलाड़ी बन रहा है।
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