अमेरिका ने तुर्की को 'F-35' देने से किया इनकार

न्यूज डेस्क। तुर्की और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग के संबंधों में एक बार फिर दरार नजर आई है। अमेरिका ने तुर्की को अत्याधुनिक F-35 स्टेल्थ लड़ाकू विमान देने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया है, जिसे राष्ट्रपति एर्दोआन की बड़ी विदेश और रक्षा नीति हार के रूप में देखा जा रहा है।

F-35 विवाद: ट्रंप से लेकर बाइडन तक बात नहीं बनी

F-35 प्रोग्राम से तुर्की को 2019 में बाहर कर दिया गया था, जब अंकारा ने रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा। इसके बाद से तुर्की ने अमेरिका से इस फैसले को पलटने के लिए कई प्रयास किए। राष्ट्रपति एर्दोआन ने व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर बाइडन प्रशासन तक वार्ता की, लेकिन अमेरिका अपनी सुरक्षा चिंताओं के चलते टस से मस नहीं हुआ। अब जब यह साफ हो गया है कि F-35 पर दरवाज़ा पूरी तरह बंद हो गया है, तो तुर्की ने अपना रुख ब्रिटेन और यूरोपीय देशों की ओर मोड़ लिया है।

यूरोफाइटर टाइफून: तुर्की की नई उम्मीद

अमेरिकी इनकार के बाद, तुर्की ने यूरोफाइटर टाइफून खरीदने के प्रयास तेज कर दिए हैं। यूरोफाइटर टाइफून एक बहु-भूमिका लड़ाकू विमान है जिसे ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और स्पेन ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। तुर्की इस विमान का नवीनतम वर्जन—ट्रैंच 4—खरीदना चाहता है, जिसमें आधुनिक रडार सिस्टम और उन्नत एवियोनिक्स मौजूद हैं।

ब्रिटेन के रक्षा सचिव जॉन हीली की इस्तांबुल यात्रा के दौरान इस सप्ताह एक अस्थायी समझौते पर हस्ताक्षर होने की संभावना है। हालांकि, यह डील तभी फाइनल होगी जब यूरोफाइटर कंसोर्टियम के सभी सदस्य देश—विशेषकर जर्मनी—अपनी सहमति देंगे। तुर्की पहले ही जर्मन वीटो को पार करने में कामयाब हो चुका है, लेकिन अंतिम बाधाएं अब भी शेष हैं।

40 विमानों का सौदा, लेकिन कीमत बनी चुनौती

तुर्की लगभग 40 यूरोफाइटर टाइफून खरीदना चाहता है। इस साल की शुरुआत में ब्रिटेन ने इसकी शुरुआती कीमत करीब 12 अरब डॉलर बताई थी, जिसे तुर्की ने "उचित नहीं" माना था। मूल्य को लेकर बातचीत अभी भी जारी है। इसके अलावा, तुर्की तकनीकी सहयोग और पायलट प्रशिक्षण की भी शर्त रख रहा है, क्योंकि उसके पायलट अब तक केवल अमेरिकी विमानों (जैसे F-16) का ही संचालन करते आए हैं।

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