शीत युद्ध के दौर में पनपी गहरी समझ
1955 में पंडित नेहरू की सोवियत संघ यात्रा ने दोनों देशों के रिश्तों की नींव रखी। उस समय भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा था, फिर भी उसने सोवियत संघ के साथ विशेष संबंध बनाए। बदले में रूस ने भारत के औद्योगीकरण, शिक्षा, विज्ञान और रक्षा क्षेत्र में सहयोग किया।
बता दें की सोवियत संघ ने 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारत का खुलकर समर्थन किया। उस वक्त भारत और रूस के बीच "भारत-सोवियत मैत्री संधि" पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर रणनीतिक मजबूती दी।
रूस बना भारत का भरोसेमंद रक्षा सहयोगी
1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद भी भारत-रूस रिश्ते कमजोर नहीं पड़े। रूस, भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता बना रहा। मिग-21 से लेकर एस-400 मिसाइल सिस्टम तक, भारत की सैन्य ताकत में रूस की भूमिका अहम रही है। दोनों देशों ने ब्रह्मोस मिसाइल जैसे संयुक्त रक्षा परियोजनाओं में भी सहयोग किया है।
मोदी युग में भी रिश्तों को मिली नई ऊर्जा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारत-रूस संबंधों को नई ऊंचाइयां मिली हैं। दोनों देशों ने "विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी" को और मजबूत किया है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चाहे संयुक्त राष्ट्र हो या ब्रिक्स, भारत और रूस अक्सर एक-दूसरे का समर्थन करते नजर आते हैं।
2021 में पीएम मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दिल्ली में हुई शिखर वार्ता में 28 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें ऊर्जा, व्यापार, रक्षा, और साइंस-टेक्नोलॉजी क्षेत्र शामिल थे। रूस ने "मेक इन इंडिया" पहल के तहत भारत में रक्षा निर्माण में रुचि दिखाई है।
यूक्रेन संकट और भारत की संतुलित नीति
2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने तटस्थ रुख अपनाते हुए दोनों देशों से संवाद की अपील की। भारत ने कूटनीति और बातचीत के जरिए समाधान की बात कही, जिससे उसकी स्वतंत्र विदेश नीति की झलक मिली। भारत की यह स्थिति रूस के लिए भी संतुलनकारी रही।
सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंध भी मजबूत
रक्षा और रणनीतिक सहयोग के अलावा दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध भी गहरे हैं। मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग में भारतीय संस्कृति को सराहा जाता है। हजारों भारतीय छात्र आज भी रूस में मेडिकल और टेक्निकल शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
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