भारतीय सेना के टैंकों को मिलेगा 'स्वदेशी इंजन'

नई दिल्ली। भारत की रक्षा तैयारियों को अब स्वदेशी ताकत का इंजन मिलेगा। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की प्रमुख प्रयोगशाला, कॉम्बैट व्हीकल्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (CVRDE), ने एक ऐसा रोडमैप तैयार किया है जो भारत को टैंकों और अन्य बख्तरबंद वाहनों के लिए आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस योजना के तहत 2030 तक पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से 600 से 1500 हॉर्सपावर तक के इंजन विकसित किए जाएंगे।

क्यों जरूरी है यह पहल?

वर्तमान में भारतीय सेना के कई प्रमुख टैंक जैसे T-90 और T-72 विदेशी इंजनों पर निर्भर हैं। यह न केवल लॉजिस्टिक्स को जटिल बनाता है, बल्कि रखरखाव और लागत में भी चुनौती पेश करता है। आयातित इंजनों पर निर्भरता से राष्ट्रीय सुरक्षा की रणनीतिक मजबूती भी प्रभावित होती है। ऐसे में CVRDE की यह पहल ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को सशक्त बनाने के साथ-साथ भारत की सैन्य आत्मनिर्भरता को भी नई ऊंचाई देगी।

इंजन रेंज और इनका महत्व

600 HP इंजन: यह हल्के बख्तरबंद वाहनों जैसे आर्मर्ड पर्सनल कैरियर्स (APCs) और टोही गाड़ियों के लिए उपयुक्त है। इस श्रेणी के इंजन पहले ही प्रदर्शन परीक्षण पास कर चुके हैं और अब दीर्घकालिक मजबूती की जांच (Durability Trials) में हैं।

1200 से 1500 HP इंजन: यह शक्तिशाली इंजन मुख्य युद्धक टैंकों (MBTs) जैसे अर्जुन सीरीज और भविष्य के भारी कॉम्बैट वाहनों के लिए विकसित किए जाएंगे। इनका निर्माण उच्च शक्ति, विश्वसनीयता और कठिन ऑपरेशनल वातावरण में प्रदर्शन की कसौटी पर किया जाएगा।

भविष्य की क्या है दिशा?

CVRDE की योजना केवल इंजनों तक सीमित नहीं है। संस्थान का उद्देश्य एक संपूर्ण ट्रैक्शन सिस्टम विकसित करना है, जिसमें ट्रांसमिशन, कूलिंग सिस्टम और डिजिटल कंट्रोल मॉड्यूल भी शामिल होंगे। यह पहल भारतीय सेना को आने वाले दशकों के लिए तैयार करने में मदद करेगी, साथ ही देश को वैश्विक डिफेंस टेक्नोलॉजी इनोवेशन की दौड़ में अग्रणी बना सकती है।

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