बिहार में वंशावली के लिए तहसीलदार का भी होगा हस्ताक्षर

न्यूज डेस्क। बिहार में वंशावली (परिवारिक वंश विवरण) प्रमाणपत्र बनवाने की प्रक्रिया में अब बड़ा बदलाव किया गया है, खासकर शहरी क्षेत्रों में। मुजफ्फरपुर नगर निगम द्वारा लिए गए हालिया फैसले के तहत अब वंशावली प्रमाणपत्र केवल पार्षद के हस्ताक्षर से नहीं बनेगा। इसे वैधता देने के लिए अब संबंधित वार्ड के टैक्स वसूली तहसीलदार का भी हस्ताक्षर अनिवार्य कर दिया गया है। इस संयुक्त हस्ताक्षर प्रणाली का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और फर्जी वंशावली निर्माण की घटनाओं पर रोक लगाना है।

क्यों जरूरी हुआ बदलाव?

पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया कि प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाओं का लाभ लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग वंशावली प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर रहे हैं। इसी प्रक्रिया में कई बार फर्जी दस्तावेज बनवाए गए और अपात्र लोगों ने सरकारी योजनाओं का लाभ उठा लिया। वंशावली प्रमाणपत्रों में इस तरह के धोखाधड़ी के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए ही यह सख्ती की गई है।

नया फॉर्मेट: पार्षद और तहसीलदार की संयुक्त जिम्मेदारी

नगर निगम ने सभी पार्षदों को निर्देश दिया है कि अब से वंशावली प्रमाणपत्र उसी फॉर्मेट में जारी किए जाएं जो निगम द्वारा निर्धारित किया गया है। इस नए फॉर्मेट पर पार्षद के साथ-साथ तहसीलदार का हस्ताक्षर होना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, दोनों को इसका विस्तृत रिकॉर्ड भी रखना होगा।

हर वंशावली प्रमाणपत्र का एक सीरियल नंबर होगा जो एक विशेष रजिस्टर में दर्ज किया जाएगा। इस रजिस्टर में परिवार की संक्षिप्त जानकारी, आवेदन की तारीख, शपथ पत्र संख्या और सत्यापन स्थिति जैसी जानकारियाँ दर्ज होंगी। इससे रिकॉर्ड का ट्रैक रखना आसान होगा और भविष्य में किसी भी जांच की स्थिति में पारदर्शिता बनी रहेगी।

शपथ पत्र और सत्यापन प्रक्रिया

वंशावली प्रमाणपत्र बनवाने के लिए अब शपथ पत्र देना अनिवार्य कर दिया गया है। इस शपथ पत्र में परिवार के सदस्यों की संख्या, रिश्ते, आयु, और अन्य जरूरी विवरण शामिल होंगे। शपथ पत्र की संख्या भी प्रमाणपत्र पर दर्ज की जाएगी। इसके बाद तहसीलदार स्थानीय स्तर पर पड़ोसियों और संबंधित व्यक्तियों से जानकारी लेकर वेरिफिकेशन करेंगे। यदि दी गई जानकारी सही पाई जाती है तभी वे हस्ताक्षर करेंगे।

क्या होगा असर?

इस पहल से सरकारी योजनाओं में अपात्र लाभार्थियों की संख्या में कमी आने की उम्मीद है। साथ ही, पार्षदों की जवाबदेही बढ़ेगी और तहसीलदारों की निगरानी से प्रक्रिया और अधिक विश्वसनीय बनेगी। इससे न केवल फर्जीवाड़े पर रोक लगेगी बल्कि जरूरतमंद और सही पात्रता वाले परिवारों को समय पर सहायता भी मिल सकेगी।

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