यूरोप नहीं ..एशिया में दो बड़ी महाशक्तियों का उदय

नई दिल्ली। वर्षों से विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था का केंद्र यूरोप ही माना जाता रहा है। औद्योगिक क्रांति से लेकर दो विश्व युद्धों तक, यूरोप ने विश्व के अधिकांश हिस्सों पर प्रभाव कायम किया। लेकिन बीते कुछ दशकों में वैश्विक शक्ति के केंद्र में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। अब यूरोप नहीं, बल्कि एशिया महाशक्तियों का उदय कर रहा है, जो विश्व राजनीति, आर्थिक और सामरिक संतुलन को पूरी तरह से नया आकार दे रहे हैं।

एशिया की नई महाशक्तियाँ – चीन और भारत

एशिया महाद्वीप पर दो देश – चीन और भारत – तेजी से उभरते हुए वैश्विक महाशक्ति के रूप में उभरे हैं। चीन, अपनी विशाल आर्थिक प्रगति, तकनीकी विकास और सामरिक ताकत के कारण, विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। वहीं, भारत भी अपनी युवा जनसंख्या, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और डिजिटल क्रांति के साथ वैश्विक मानचित्र पर अपनी जगह मजबूत कर रहा है।

आर्थिक बदलाव और वैश्विक प्रभाव

चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल, और भारत की ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाएं न केवल उनके देशों को मजबूत कर रही हैं, बल्कि पूरी दुनिया के साथ उनके व्यापारिक और आर्थिक संबंधों को भी मजबूत कर रही हैं। यह आर्थिक शक्ति इन दोनों देशों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई भूमिका निभाने के लिए सक्षम बना रही है।

सामरिक और कूटनीतिक बढ़त

चीन और भारत ने अपनी सैन्य ताकत भी बढ़ाई है। दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियाँ और भारत का अपने पड़ोसी देशों के साथ सामरिक गठजोड़, इस क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था को बदल रहे हैं। दोनों देश संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अधिक प्रभावशाली भूमिका निभाने लगे हैं।

यूरोप के परिदृश्य में बदलाव

जबकि यूरोप कई चुनौतियों जैसे आर्थिक मंदी, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक विभाजन का सामना कर रहा है, तब एशिया की ये दो महाशक्तियाँ विश्व राजनीति में अपनी जगह मजबूत कर रही हैं। यह बदलाव वैश्विक शक्ति संतुलन को पूर्ववत नहीं रहने दे रहा।

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