यूपी में शिक्षामित्रों-अनुदेशकों का मानदेय संकट

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में इस वर्ष 21 मई से 15 जून तक पहली बार ग्रीष्मकालीन समर कैंप का आयोजन किया गया। इस नवाचारपूर्ण पहल का उद्देश्य बच्चों की रचनात्मकता को विकसित करना और सीखने की प्रक्रिया को आनंददायक बनाना था। समर कैंप की पूरी जिम्मेदारी राज्य भर के 1.42 लाख शिक्षामित्रों और 25 हजार अनुदेशकों को सौंपी गई थी। विभाग द्वारा इन शिक्षकों को उनके कार्य के बदले ₹6000 मानदेय देने की घोषणा की गई थी। लेकिन जुलाई का मध्य आ चुका है, और अब तक यह मानदेय जारी नहीं किया गया है।

शिक्षामित्रों और अनुदेशकों में इसको लेकर जबरदस्त असंतोष है। उनका कहना है कि गर्मियों की भीषण गर्मी में विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाने, गतिविधियां संचालित करने और समर कैंप को सफल बनाने में उन्होंने पूर्ण समर्पण से काम किया। उन्हें यह आश्वासन दिया गया था कि समर कैंप के समापन के बाद समय से मानदेय प्रदान कर दिया जाएगा। लेकिन अब स्थिति यह है कि वे भुगतान के लिए अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं।

संघ ने उठाई आवाज

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के प्रदेश मंत्री कौशल कुमार ने इस मामले को गंभीरता से उठाया है। उन्होंने बेसिक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार से मिलकर शिक्षामित्रों और अनुदेशकों का मानदेय शीघ्र जारी करने की मांग की है। कौशल कुमार का कहना है कि शिक्षामित्रों को पूरे वर्ष में केवल 11 महीनों का ही मानदेय दिया जाता है। इसके बावजूद जब विभाग ने उन्हें गर्मी में कार्य करने के लिए कहा, तो उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के इस जिम्मेदारी को निभाया।

उनका तर्क है कि यदि शिक्षामित्रों और अनुदेशकों के भरोसे विभाग नई योजनाएं लागू करता है, तो फिर उन्हें उनका पारिश्रमिक समय पर क्यों नहीं मिलना चाहिए? उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि जल्द ही मानदेय का भुगतान नहीं किया गया, तो शिक्षामित्र आंदोलन का रास्ता अपनाने पर विवश होंगे।

वित्तीय सुस्ती या प्रशासनिक लापरवाही?

यह सवाल अब बड़ा हो गया है कि जब विभाग ने बजट का प्रावधान पहले ही किया था और मानदेय की राशि तय कर दी गई थी, तो फिर देरी किस कारण हो रही है? क्या यह वित्तीय स्वीकृति में अड़चन है या फिर प्रशासनिक उदासीनता?

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