भारत के 'Project-75I' से उड़े होश: जानकार चौंक जाएंगे

नई दिल्ली। भारत की समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक ताकत को अगले दशक में एक नई ऊंचाई मिलने जा रही है। रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में दो ऐसे ऐतिहासिक रक्षा सौदों को अंतिम रूप देने की दिशा में कदम बढ़ाया है जो भारतीय नौसेना को न केवल आधुनिक बनाएंगे, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के सपने को भी मजबूती देंगे। इन सौदों में पहला है 'Project-75I', जिसकी अनुमानित लागत 70,000 करोड़ रुपये है और दूसरा स्कॉर्पीन क्लास की तीन अतिरिक्त पनडुब्बियों के निर्माण से जुड़ा है, जिसकी कीमत करीब 36,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है।

Project-75I: समंदर के गर्भ में छिपी ताकत

Project-75I को भारत के सबसे महत्वाकांक्षी और रणनीतिक दृष्टिकोण से अहम रक्षा प्रोजेक्ट्स में गिना जा रहा है। इसके तहत छह नई डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों का निर्माण किया जाएगा, जो अत्याधुनिक Air Independent Propulsion (AIP) तकनीक से लैस होंगी। यह तकनीक पारंपरिक पनडुब्बियों की तुलना में कई गुना अधिक स्टील्थ और टिकाऊ संचालन की क्षमता प्रदान करती है। जहां पारंपरिक पनडुब्बियों को हर 48 घंटे में सतह पर आना पड़ता है, वहीं AIP पनडुब्बियां बिना सतह पर आए दो सप्ताह तक समंदर की गहराइयों में मिशन को अंजाम दे सकती हैं।

इस परियोजना के अंतर्गत मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड और जर्मनी की थाईसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS) मिलकर इन पनडुब्बियों का निर्माण करेंगी। TKMS भारत को 100% तकनीकी ट्रांसफर देगा, जिससे देश को न केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता मिलेगी बल्कि भविष्य में पनडुब्बी निर्माण में निर्यातक बनने की संभावना भी बढ़ेगी।

निर्माण की टाइमलाइन

इस मेगा प्रोजेक्ट की पहली पनडुब्बी, कॉन्ट्रैक्ट साइन होने के करीब सात वर्षों के भीतर तैयार होगी। इसके बाद प्रत्येक वर्ष एक-एक पनडुब्बी नौसेना के बेड़े में शामिल की जाएगी। 2030 के दशक के मध्य तक पूरी श्रृंखला भारतीय नौसेना की ताकत बन चुकी होगी।

स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बियों की नई खेप

दूसरे सौदे के अंतर्गत, पहले से मौजूद कलवरी क्लास (Scorpene-Class) पनडुब्बियों में तीन और की बढ़ोतरी की जाएगी। ये पनडुब्बियां पहले से ही भारतीय नौसेना में अपनी कार्यकुशलता और विश्वसनीयता साबित कर चुकी हैं। इनका निर्माण मझगांव डॉक में फ्रांसीसी कंपनी नेवल ग्रुप के सहयोग से हो रहा है। इन तीन अतिरिक्त यूनिट्स से नौसेना की ऑपरेशनल रेडीनेस और पैट्रोलिंग क्षमताएं और मजबूत होंगी, विशेषकर हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच।

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