रूस में भारतीय मजदूरों की मांग बढ़ी? जानिए वजह

नई दिल्ली। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध ने केवल भू-राजनीतिक समीकरणों को नहीं बदला है, बल्कि इससे रूस के भीतर श्रम बाज़ार में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। तीन साल से चल रही इस लड़ाई ने रूस में कुशल कामगारों की भारी कमी पैदा कर दी है, जिससे अब वह भारत जैसे देशों की ओर देख रहा है खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ तकनीकी दक्षता और पेशेवर अनुभव की ज़रूरत है।

क्यों बढ़ रही है भारतीय कामगारों की मांग?

भारत के रूस में राजदूत विनय कुमार के अनुसार, रूस की मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे तकनीकी क्षेत्रों में भारतीय कामगारों की काफी मांग है। इसके पीछे दो मुख्य वजहें हैं, रूस में बढ़ती लेबर की कमी और भारतीय कर्मचारियों की तकनीकी स्किल पर भरोसा। रूस अब भारतीय नागरिकों को रोजगार देकर अपनी उत्पादन क्षमता को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।

एक अनुमान के मुताबिक, रूस को 2024 के अंत तक करीब 15 लाख कुशल कामगारों की जरूरत थी, जो 2030 तक बढ़कर 31 लाख तक पहुंच सकती है। खासकर निर्माण, परिवहन, और सार्वजनिक सेवाओं जैसे क्षेत्रों में यह संकट और गहरा है। रूस के केंद्रीय बैंक की गवर्नर एल्विरा नबीउलीना ने इसे "रूसी अर्थव्यवस्था की मुख्य समस्या" कहा है।

भारत: एक संभावित समाधान

भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा युवा कार्यबल रखने वाला देश है, रूस के लिए एक स्वाभाविक विकल्प बनकर उभरा है। भारत से जो श्रमिक रूस पहुंच रहे हैं, वे तकनीकी रूप से प्रशिक्षित हैं, अनुभव भी रखते हैं और अपेक्षाकृत कम वेतन की उम्मीद करते हैं, जो रूसी कंपनियों के लिए उन्हें और आकर्षक बनाता है।

2021 से लेकर 2024 तक, रूस में भारतीय श्रमिकों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। 2021 में जहां केवल 2,876 भारतीयों ने वर्क वीज़ा के लिए आवेदन किया था, वहीं 2024 में यह संख्या बढ़कर 22,631 हो गई। 2025 में 40,000 से अधिक भारतीयों के रूस पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है।

दोनों देशों के लिए फायदेमंद स्थिति

इस सहयोग में दोनों देशों को लाभ दिखता है। रूस को उसकी अर्थव्यवस्था को चालू रखने के लिए कुशल कामगार मिलते हैं, वहीं भारतीयों को बेहतर वेतन और विदेशी अनुभव का अवसर। भारत में भी बड़ी संख्या में लोग नौकरी की तलाश में हैं, और विदेशों में काम करने का सपना देखते हैं। ऐसे में रूस, खाड़ी देशों के अलावा एक नया विकल्प बनकर उभर रहा है।

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