ताइवान – सबसे ऊपर क्यों?
रैंकिंग में पहले स्थान पर है ताइवान, जो एक अपेक्षाकृत छोटा लेकिन अत्यंत तकनीकी और औद्योगिक रूप से उन्नत देश है। इसकी जनसंख्या लगभग 2.31 करोड़ है, लेकिन इसके बावजूद यहां 760,000 से ज्यादा लोग ऐसे हैं जिनकी संपत्ति 1 मिलियन डॉलर (लगभग 8.3 करोड़ रुपये) से अधिक है। औसत वेल्थ पर एडल्ट $312,075 तक पहुंच गई है, जो यह दर्शाता है कि देश की मिडिल और अपर क्लास तेजी से समृद्ध हो रही है। इसके पीछे कारण साफ हैं — ताइवान सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण का वैश्विक केंद्र बन चुका है। हाई-टेक इंडस्ट्री और एक्सपोर्ट-ओरिएंटेड इकोनॉमी ने देश की संपत्ति में जबरदस्त इजाफा किया है।
तुर्की – आर्थिक संकट से उभरती समृद्धि
दूसरे नंबर पर है तुर्की, जिसे कभी ‘यूरोप का बीमार देश’ कहा जाता था। यहां एक साल में 7,000 नए मिलिनेयर बने हैं — यानी 8.4% की बढ़ोतरी। यह तब है जब देश हाल ही में मुद्रास्फीति, मुद्रा संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था। लेकिन रियल एस्टेट, पर्यटन और टेक सेक्टर में तेजी से विकास ने हाई-नेट-वर्थ इंडिविजुअल्स (HNWIs) की संख्या बढ़ाई है।
कजाकस्तान और इंडोनेशिया – नए अमीर
तीसरे और चौथे नंबर पर क्रमशः कजाकस्तान और इंडोनेशिया हैं। कजाकस्तान, जो ऊर्जा और खनिज संसाधनों से समृद्ध है, अब मिडल ईस्ट और एशिया के बीच का एक निवेश हब बन रहा है। वहीं इंडोनेशिया, जिसकी जनसंख्या बड़ी और युवा है, टेक्नोलॉजी और फिनटेक स्टार्टअप्स के कारण संपत्ति सृजन का नया केंद्र बन रहा है।
भारत, चीन और अमेरिका क्यों बाहर?
दरअसल, अमेरिका में पहले से ही मिलिनेयर्स की संख्या बहुत अधिक है, इसलिए वहां ग्रोथ रेट धीमी है, भले ही कुल संख्या सबसे अधिक हो। चीन की अर्थव्यवस्था हाल के वर्षों में धीमी हुई है — प्रॉपर्टी संकट, सरकारी नियम-कायदे और जीरो-कोविड पॉलिसियों के प्रभाव के चलते वेल्थ ग्रोथ पर असर पड़ा है। जबकि, भारत में भले ही इकॉनमी तेजी से बढ़ रही हो, लेकिन वेल्थ का वितरण असमान है। यहां अभी भी बड़ी संख्या में लोग लोअर और लोअर-मिडल क्लास में हैं। तेजी से बनने वाले अमीरों की दर तुलनात्मक रूप से धीमी है।
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