BrahMos-2K की तैयारी में भारत: चीन की उड़ी नींद

नई दिल्ली। हाल ही में भारत और रूस के बीच ब्रह्मोस-2K हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल के विकास को पुनः गति देने की तैयारियां तेज हो गई हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस अत्याधुनिक हथियार को लेकर उम्मीद है कि इस साल के अंत में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान इसे अंतिम मंजूरी मिल सकती है। यह परियोजना न केवल दोनों देशों के रक्षा सहयोग को मजबूत करेगी, बल्कि भारत की सामरिक क्षमताओं में भी एक नई क्रांति लाने वाली है।

ब्रह्मोस-2K: मिसाइल प्रौद्योगिकी में छलांग

ब्रहमोस-2K को सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल का हाइपरसोनिक संस्करण माना जा रहा है, जो रूस की 3M22 जिरकोन मिसाइल के तकनीकी आधार पर विकसित होगा। जिरकोन की स्क्रैमजेट इंजन तकनीक इस मिसाइल को 7 से 8 मैक की अत्यधिक गति देने में सक्षम बनाएगी। इसकी मारक क्षमता लगभग 1,500 किलोमीटर तक होगी, जो इसे क्षेत्रीय और रणनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली बनाती है।

यह परियोजना लगभग एक दशक पहले ब्रह्मोस एयरोस्पेस द्वारा प्रस्तावित की गई थी, लेकिन संवेदनशील हाइपरसोनिक तकनीक साझा करने को लेकर रूस की अनिच्छा और उच्च लागत के कारण इसमें देरी हुई। अब, बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य और भारत की बढ़ती रक्षा आवश्यकताओं के कारण, इस मिशन को पुनः जीवित किया जा रहा है।

मिसाइल की तकनीकी विशेषताएं

ब्रहमोस-2K को खास तौर पर हाइपरसोनिक उड़ान और अद्भुत सटीकता के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका स्क्रैमजेट इंजन इसे निरंतर उच्च गति पर बनाए रखता है, जिससे यह जहाज-रोधी और जमीनी लक्ष्यों को बेहद कुशलता से निशाना बना सकती है। कम रडार क्रॉस-सेक्शन और उच्च गतिशीलता इसे रोक पाना दुश्मन के लिए बेहद मुश्किल बना देती हैं।

यह मिसाइल न केवल गति में अपनी श्रेष्ठता दिखाएगी, बल्कि अपने जिरकोन तकनीक से लिए गए उन्नत डिज़ाइन के कारण लंबी दूरी तक लक्ष्यों को बर्बाद करने की क्षमता रखती है। इसकी तकनीकी परिष्करण और उच्च मारक क्षमता इसे क्षेत्रीय सुरक्षा तंत्र में एक निर्णायक भूमिका निभाने वाला हथियार बनाएगी।

सामरिक महत्व और क्षेत्रीय प्रभाव

ब्रह्मोस-2K की सामरिक भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता। हिंद महासागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती चीन की सैन्य गतिविधियों के बीच यह मिसाइल भारत के लिए एक मजबूत जवाब साबित होगी। भारतीय नौसेना के लिए यह अपने जहाज-रोधी हमलों को और सशक्त बनाएगी, जबकि वायुसेना अपने सुखोई-30MKI विमानों के माध्यम से हवाई-प्रक्षेपण संस्करण को तैनात कर सकेगी। थलसेना के लिए भी यह मिसाइल दुश्मन के अंदरूनी सामरिक ठिकानों पर गहरी और सटीक हमले की क्षमता लेकर आएगी।

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