दुर्लभ खनिजों की दौड़ में भारत की एंट्री
भारत ने वैश्विक सप्लाई चेन को मजबूत करने और चीन पर निर्भरता घटाने के उद्देश्य से दुर्लभ पृथ्वी खनिजों की खोज और व्यापारिक समझौतों की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। केंद्र सरकार के अनुसार, भारत ने अब तक कम से कम आठ खनिज-संपन्न देशों—जैसे ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, जांबिया, पेरू, जिम्बाब्वे, मोजाम्बिक, मलावी और आइवरी कोस्ट—के साथ समझौते किए हैं। इसके अलावा ब्राजील और डोमिनिकन रिपब्लिक के साथ भी सरकार-से-सरकार स्तर पर एमओयू की प्रक्रिया जारी है।
भारत की घरेलू क्षमता और संसाधन
भारत खुद भी दुर्लभ खनिजों के मामले में कंगाल नहीं है। देश में 7.23 मिलियन टन दुर्लभ पृथ्वी तत्व ऑक्साइड मौजूद हैं। इसके अलावा 13.15 मिलियन टन मोनाजाइट का भंडार भी है, जो थोरियम जैसे ऊर्जा-संपन्न तत्वों का प्रमुख स्रोत है। आंध्र प्रदेश, ओडिशा, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में इन खनिजों की अच्छी-खासी मौजूदगी है। इसके साथ ही भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) की नई खोजों में 482.6 मिलियन टन संसाधनों की पहचान की गई है, जिससे भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हो रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर रणनीतिक गठजोड़
भारत ने खनिज सुरक्षा भागीदारी, इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF), क्वाड और भारत-यूके टेक्नोलॉजी एंड सिक्योरिटी इनिशिएटिव (TSI) जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भी सक्रिय भागीदारी दिखाई है। इन साझेदारियों का उद्देश्य न केवल खनिजों की सप्लाई चेन को बहुआयामी बनाना है, बल्कि तकनीकी ट्रांसफर और संयुक्त अनुसंधान को भी बढ़ावा देना है।
चीन का नियंत्रण और उसकी चुनौती
वर्तमान में चीन वैश्विक REE सप्लाई का लगभग 90% हिस्सा नियंत्रित करता है। चीन ने हाल ही में सुपर मैग्नेट्स के निर्यात पर पाबंदी लगा दी, जिससे अमेरिका और भारत जैसे देशों की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री को बड़ा झटका लगा। भारत के ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में इससे भारी असंतुलन पैदा हुआ। इसी एकाधिकार को खत्म करने के लिए भारत अब सक्रियता से "डिप्लोमैटिक माइनिंग" की नीति पर काम कर रहा है।
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