दुनिया में लेजर हथियारों की होड़: भारत इस दौड़ में कहां हैं?

नई दिल्ली। 21वीं सदी की सैन्य तकनीक में अब बारूद नहीं, बल्कि प्रकाश की किरणें युद्ध का भविष्य तय कर रही हैं। लेज़र हथियार या डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) अब कल्पना नहीं, बल्कि हकीकत बन चुके हैं। अमेरिका, चीन, रूस और  इजरायल जैसे देश अपने-अपने उन्नत लेज़र सिस्टम तैयार कर चुके हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है — क्या भारत इस दौड़ में पीछे है, या फिर दुनिया की अगली सैन्य क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका हैं?

दुनिया की दौड़: कौन कितना आगे?

लेज़र हथियारों पर काम दुनिया के प्रमुख सैन्य ताकतवर देशों में कई वर्षों से चल रहा है: जैसे अमेरिका ने HELIOS और P‑HEL सिस्टम जैसे समुद्र से दागे जा सकने वाले लेज़र सिस्टम तैनात करना शुरू कर दिया है। ये ड्रोन और मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर सकते हैं।

जबकि, ब्रिटेन की DragonFire प्रणाली को रॉयल नेवी की युद्धपोतों पर 2027 तक तैनात किया जाएगा। यह बेहद सटीक और कम लागत वाला हथियार है। इसके अलावे चीन गुप्त रूप से सुपर लेज़र और अंतरिक्ष आधारित हथियारों पर काम कर रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बनते जा रहे हैं।

इन हथियारों की खासियत यह है कि इनसे मिसाइल, ड्रोन, विमानों और यहां तक कि उपग्रहों को भी बिना किसी विस्फोटक के निष्क्रिय किया जा सकता है। वहीं रूस और इजरायल के द्वारा भी लेजर हथियार का विकास कर लिया गया हैं।

भारत की स्थिति: शुरुआती प्रयोग से सफलता की ओर

भारत ने इस क्षेत्र में देर से शुरुआत की, लेकिन अब प्रगति स्पष्ट दिख रही है। अप्रैल 2025 में DRDO ने आंध्रप्रदेश के कुरनूल में एक 30 kW लेज़र हथियार प्रणाली का सफल परीक्षण किया। यह प्रणाली स्वार्म ड्रोन्स, छोटे विमान और निगरानी उपकरणों को कुछ ही सेकंड में खत्म कर सकती है। इससे भारत अब उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जिनके पास मध्यम शक्ति वाले लेज़र हथियार हैं। DRDO अब 50 kW और 100 kW तक के सिस्टम विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है।

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