भारत की नई मिसाइल से दुनिया हैरान, जानें ताकत


नई दिल्ली। भारत ने बीते वर्षों में अपनी सामरिक क्षमता को मजबूत करने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। इन्हीं प्रयासों का एक अहम पड़ाव है—K-5 बैलिस्टिक मिसाइल, जिसे भारत की डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) विकसित कर रही है। यह मिसाइल भारत के न्यूक्लियर ट्रायड (थल, जल, नभ से परमाणु हमले की क्षमता) को पूर्णता की ओर ले जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।

K-5: पानी के नीचे से परमाणु प्रतिशोध की क्षमता

K-5 एक सबमरीन से लॉन्च की जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) है। यह खास तकनीक से लैस मिसाइल समंदर की गहराइयों में छिपी भारतीय पनडुब्बियों से दागी जा सकती है, जिससे दुश्मन को न केवल चौंकाया जा सकता है बल्कि भारी नुक़सान भी पहुँचाया जा सकता है। K-5 को विशेष रूप से अरिहंत श्रेणी की परमाणु-संचालित पनडुब्बियों के लिए डिज़ाइन किया गया है। ये पनडुब्बियाँ लंबी अवधि तक जल के भीतर रह सकती हैं और बिना सतह पर आए लक्ष्य को भेदने में सक्षम होती हैं।

1 .K-5 की खूबियाँ: लंबी दूरी की मारक क्षमता K-5 मिसाइल की रेंज लगभग 5,000 से 6,000 किलोमीटर तक बताई जा रही है, जिससे यह चीन जैसे दूर के लक्ष्यों तक भी आसानी से पहुँच सकती है—वह भी भारतीय समुद्री सीमा से बाहर गए बिना।

2 .MIRV तकनीक: K-5 में Multiple Independently targetable Reentry Vehicle (MIRV) तकनीक शामिल हो सकती है, जिससे यह एक ही लॉन्च में कई अलग-अलग लक्ष्यों पर वार कर सकती है। यह दुश्मन के लिए हालात को और भी जटिल बना देता है।

3 .भारी पेलोड क्षमता: यह मिसाइल लगभग 2 टन तक का परमाणु या पारंपरिक विस्फोटक पेलोड ले जा सकती है, जिससे इसका विनाशकारी असर और अधिक बढ़ जाता है।

4 .हाई स्पीड और सटीकता: DRDO के दावे के अनुसार, K-5 अपनी श्रेणी की सबसे तेज SLBM बन सकती है। इसकी गति और सटीकता भारतीय नौसेना को रणनीतिक बढ़त देती है।

5 .रडार-प्रूफ डिजाइन और काउंटरमेजर्स: मिसाइल को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह दुश्मन के रडार से बच सके और इलेक्ट्रॉनिक काउंटरमेजर्स का सामना कर सके।

रणनीतिक दृष्टिकोण से क्यों खास है K-5?

भारत की 'नो फर्स्ट यूज़' (No First Use) नीति के तहत, प्रतिरोध की विश्वसनीय क्षमता अत्यंत आवश्यक है। K-5 जैसी मिसाइलें इस रणनीति में एक तरह की ‘अंतिम चेतावनी’ की भूमिका निभाती हैं—यदि भारत पर परमाणु हमला होता है, तो वह समुद्र में छिपी पनडुब्बियों से जवाबी हमला कर सकता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि पनडुब्बियाँ आसानी से ट्रैक नहीं की जा सकतीं। मतलब, अगर दुश्मन ने थल या नभ से हमला किया भी, तो जल के नीचे छिपी मिसाइलें उसके लिए अंत बन सकती हैं।

तैनाती के करीब है यह मिसाइल

2015 में मंजूरी मिलने के बाद से K-5 परियोजना पर तेजी से काम हुआ है। हाल ही में DRDO ने इसके बाहरी कवर का प्रदर्शन किया है, जो मिसाइल की सुरक्षा और तैनाती से पहले की अहम तैयारी का संकेत है। यह स्पष्ट करता है कि भारत अब इस मिसाइल को अपने नौसेना शस्त्रागार में शामिल करने के लिए तैयार है।

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