अब तक क्या हुआ, और क्या नहीं?
जनवरी में की गई घोषणा के बाद यह अनुमान लगाया जा रहा था कि अप्रैल 2025 तक टर्म ऑफ रेफरेंस (ToR)—जो किसी भी वेतन आयोग के कार्य की रूपरेखा तय करता है—को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। लेकिन वास्तविकता यह है कि अब तक न तो ToR को सार्वजनिक किया गया है और न ही आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्यों की नियुक्ति हुई है।
हालांकि, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) द्वारा अप्रैल में कुछ प्रशासनिक पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे, लेकिन इस प्रक्रिया की गति भी धीमी रही और आवेदन की अंतिम तिथि को दो बार बढ़ाकर अब 31 जुलाई कर दिया गया है।
कर्मचारी और पेंशनर्स में बेचैनी?
वेतन आयोग से जुड़ी हर छोटी-बड़ी खबर पर अब कर्मचारी संगठन और पेंशनर्स की निगाहें टिकी हुई हैं। लेकिन आधिकारिक स्तर पर प्रक्रिया की धीमी गति ने अनिश्चितता को और बढ़ा दिया है। कई कर्मचारी संगठनों और पेंशनर्स एसोसिएशनों ने सरकार को पत्र लिखकर स्पष्ट समय-सीमा और पारदर्शिता की मांग की है। मीडिया में फैली अफवाहें और अलग-अलग फिटमेंट फैक्टर की अटकलें इस अनिश्चितता को और गहरा रही हैं।
ToR क्यों है इतना महत्वपूर्ण?
"टर्म ऑफ रेफरेंस" यानी ToR आयोग को यह स्पष्ट करता है कि उसे किन मुद्दों पर विचार करना है—क्या केवल वेतन संरचना पर, या भत्तों, पेंशन सुधार, न्यूनतम वेतन, महंगाई भत्ता जैसी कई अन्य चीज़ों पर भी सुझाव देने हैं। जब तक ToR तय नहीं होता, आयोग का काम सिर्फ घोषणा मात्र बना रहता है।
आगे क्या हो सकता है?
अगर अगस्त 2025 तक ToR और आयोग का गठन हो जाता है, तो प्रक्रिया धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ सकती है। 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत तक रिपोर्ट आने की उम्मीद की जा सकती है। सरकार चाहें तो जनवरी 2026 से इसे प्रभावी तिथि मानकर लागू कर सकती है, जैसा कि पहले के आयोगों में हुआ है।
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