योजना की शुरुआत: पहले चरण में चार जिले
योजना के पहले चरण में राज्य के चार जिलों—अयोध्या, वाराणसी, गोरखपुर और गोंडा—को चुना गया है। इन जिलों में 2,250 घरेलू बायोगैस यूनिट्स लगाए जाएंगे। यह एक पायलट प्रोजेक्ट है, जिसे सफलतापूर्वक लागू करने के बाद अगले चार वर्षों में इसे 2.5 लाख से अधिक ग्रामीण घरों तक विस्तारित करने का लक्ष्य रखा गया है।
लागत और किसानों की हिस्सेदारी
हर बायोगैस यूनिट की कुल लागत ₹39,300 निर्धारित की गई है। किसानों को केवल 10% यानी ₹3,990 का अंशदान देना होगा। शेष राशि सरकार द्वारा दी जाएगी, जिसे सरकारी अनुदान और कार्बन क्रेडिट मॉडल के जरिए पूरा किया जाएगा। इस मॉडल को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की मंजूरी मिल चुकी है।
लाभ: रसोई से खेत तक आत्मनिर्भरता
रसोई का खर्च घटेगा: बायोगैस यूनिट से एलपीजी की खपत में लगभग 70% तक कमी आएगी। इससे ग्रामीण परिवारों को मासिक बजट में राहत मिलेगी।
जैविक खाद का उत्पादन: गैस निकालने के बाद बची स्लरी का उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सकेगा, जिससे रासायनिक खादों की निर्भरता घटेगी और किसानों को फायदा होगा।
स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग: बायोगैस एक हरित और स्वदेशी ईंधन है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की उपलब्धता में सुधार होगा।
वाहनों के लिए ईंधन: भविष्य में इस गैस का उपयोग वाहनों को चलाने के लिए भी किया जा सकता है। जिससे किसानों की आय बढ़ेगी।
गोशालाएं और मनरेगा का योगदान
इस योजना के साथ ही राज्य सरकार ने मनरेगा के अंतर्गत गोशालाओं के निर्माण की भी योजना बनाई है। प्रथम चरण में 43 गोशालाओं में बायोगैस और खाद संयंत्र लगाए जाएंगे। अनुमान है कि हर गोशाला से प्रति माह 50 क्विंटल स्लरी का उत्पादन होगा, जिससे पास-पड़ोस के किसान लाभान्वित हो सकेंगे। इस पूरी प्रक्रिया में स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा।
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