क्यों जरूरी हैं 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान?
चीन पहले ही पांचवीं और छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों पर काम कर रहा है। उसका J-20 लड़ाकू विमान पहले से ही संचालन में है, और वह पाकिस्तान को भी ऐसी तकनीक मुहैया करा सकता है। ऐसे में भारत के पास कोई विकल्प नहीं बचता सिवाय इसके कि वह अपनी वायुसेना को आने वाले दशक की जरूरतों के लिए तैयार करे। जब तक स्वदेशी AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) पूरी तरह से तैयार नहीं होता, तब तक आयातित विमानों से ही यह खाई भरी जा सकती है।
कितने विमान खरीदने की योजना है?
IAF करीब 40 से 60 पांचवीं पीढ़ी के विमान खरीदने की तैयारी में है, जो लगभग दो से तीन स्क्वाड्रन के बराबर है। हर स्क्वाड्रन में 18 से 20 विमान होते हैं। यह कदम भारत की उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर वायु सुरक्षा को और मजबूत करेगा, जहां चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों से टकराव की संभावना हमेशा बनी रहती है।
विकल्प-1: अमेरिका का F-35
F-35 Lightning II, अमेरिका का सबसे आधुनिक और व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला पांचवीं पीढ़ी का स्टील्थ फाइटर है। इसके तीन वेरिएंट हैं और यह पहले ही नाटो और कई एशियाई देशों के पास है। इसके फायदे: अत्याधुनिक स्टील्थ तकनीक, बेहतरीन नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर क्षमताएं, लॉन्ग-रेंज स्ट्राइक और मल्टी-रोल ऑपरेशन में कुशल, अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को और मजबूती मिल सकती है। हालांकि, इसकी उच्च कीमत, लॉजिस्टिक निर्भरता और अमेरिका की नियंत्रण शर्तें भारत के लिए चुनौती बन सकती हैं।
विकल्प-2: रूस का Su-57
Su-57 Felon, रूस का पहला पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है। यह विमान हवा में मारक क्षमता और मैनुवरिंग के लिए जाना जाता है। इसके फायदे: बेहतर डॉगफाइटिंग क्षमताएं, भारत की रूस के साथ पुरानी सैन्य साझेदारी, संभावित रूप से कम कीमत और तकनीकी सहयोग। मगर Su-57 की स्टील्थ क्षमताओं पर सवाल उठे हैं और इसका प्रोडक्शन स्केल अभी भी सीमित है। भारत पहले FGFA प्रोजेक्ट में इससे जुड़ा था, लेकिन तकनीकी असहमति और लागत के कारण हाथ खींच लिया गया था।
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