यह फैसला भले ही बैंक के संचालन पर ताला लगाने जैसा हो, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा करना है। आरबीआई का कहना है कि बैंक की वित्तीय स्थिति इतनी कमजोर हो चुकी थी कि वह भविष्य में खाताधारकों की राशि लौटाने में सक्षम नहीं रह पाता।
लाइसेंस रद्द होने की वजह क्या रही?
भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, करवार अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक के पास पर्याप्त पूंजी नहीं थी, और न ही भविष्य में लाभ कमाने की कोई विश्वसनीय संभावना नजर आ रही थी। आरबीआई एक्ट के प्रावधानों के तहत, बैंक ने धारा 11(1) और 22(3)(D) का भी अनुपालन नहीं किया। यही नहीं, बैंक धारा 56 और धारा 5(B) के मानदंडों पर भी खरा नहीं उतरा, जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि बैंक को चालू रखना जनहित और खाताधारकों के हितों के विरुद्ध होगा।
बैंक को बंद करने और लिक्विडेटर नियुक्त करने का निर्देश
आरबीआई ने कर्नाटक के सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार से अनुरोध किया है कि बैंक को बंद किया जाए और एक लिक्विडेटर (विलयन अधिकारी) नियुक्त किया जाए, ताकि आगे की कानूनी और वित्तीय प्रक्रियाएं नियंत्रित ढंग से पूरी की जा सकें।
सबसे बड़ा सवाल यही है—जिनका पैसा बैंक में जमा है, उन्हें क्या मिलेगा?
आरबीआई ने साफ किया है कि जमाकर्ताओं को घबराने की जरूरत नहीं है। बैंक डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) की सदस्यता रखता है। इसके तहत खाताधारकों को अधिकतम ₹5 लाख तक की जमा राशि वापस मिलेगी।
यह रकम बैंक के सभी खातों में जमा राशि और उस पर मिलने वाले ब्याज को जोड़कर मानी जाएगी—चाहे वह बचत खाता हो, चालू खाता हो या फिक्स्ड डिपॉजिट। यह राशि उसी तारीख तक मानी जाएगी, जिस दिन बैंक का लाइसेंस रद्द किया गया।
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