भारत-रूस की दोस्ती: दशकों पुराना रिश्ता जो आज भी कायम है

नई दिल्ली। "दोस्ती कोई समझौता नहीं, एक भरोसे की नींव होती है"  यह बात भारत और रूस के संबंधों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। वैश्विक राजनीति में जहां समीकरण तेजी से बदलते हैं, वहीं भारत और रूस की दोस्ती समय की कसौटी पर खरी उतरती रही है। बदलती सरकारें, बदलती नीतियां, यहां तक कि शीत युद्ध और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे भू-राजनीतिक संकटों के बावजूद, यह रिश्ता आज भी मजबूती से खड़ा है।

आज नहीं, दशकों पुरानी है यह दोस्ती

भारत और रूस के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध अप्रैल 1947 में स्थापित हुए थे, यानी भारत की स्वतंत्रता से भी पहले। उस समय रूस, सोवियत संघ के रूप में जाना जाता था। यह शुरुआत ही दोस्ती की एक लंबी यात्रा की नींव बन गई। जब दुनिया दो गुटों में बंटी हुई थी। अमेरिका और सोवियत संघ, तब भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई, लेकिन रूस से संबंधों में हमेशा एक आत्मीयता बनी रही।

संकट में साथ - रूस ने निभाई दोस्ती

1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान जब अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा था, रूस ने ताशकंद समझौते की मेजबानी कर मध्यस्थता की भूमिका निभाई। पर 1971 के युद्ध में यह संबंध अपने चरम पर पहुंच गया। जब अमेरिका और चीन पाकिस्तान का समर्थन कर रहे थे, तब सोवियत संघ ने भारत के पक्ष में खड़ा होकर एक मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए। उस समय अमेरिका ने भारत को धमकाने के लिए अपना सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना किया, लेकिन जवाब में रूस ने परमाणु हथियारों से लैस जहाज और पनडुब्बियां तैनात कर दीं। यह एक स्पष्ट संकेत था भारत अकेला नहीं है।

शीत युद्ध के बाद भी नहीं टूटा रिश्ता

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद कई लोग मानते थे कि भारत-रूस संबंध कमजोर हो सकते हैं। लेकिन दोनों देशों ने 2000 में रणनीतिक साझेदारी और 2010 में विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत की, जिससे संबंध और भी गहरे हुए। 2021 से भारत और रूस के बीच 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद हो रहे हैं, जिसमें दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्री हिस्सा लेते हैं। यह स्पष्ट करता है कि यह संबंध केवल औपचारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और दीर्घकालिक है।

रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारी

भारत की सेना में आज भी रूस निर्मित हथियारों की बड़ी भूमिका है। भले ही अब भारत अमेरिका, फ्रांस, इजराइल जैसे देशों से भी हथियार खरीद रहा है, लेकिन रूस अभी भी सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी रूस का सहयोग महत्वपूर्ण है। कुडनकुलम में रूस की मदद से बन रहे रिएक्टर इसका उदाहरण हैं।

व्यापार और कनेक्टिविटी की नई राह

भारत और रूस ने 2030 तक आपसी व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। चेन्नई से व्लादिवोस्तोक तक समुद्री गलियारा और उत्तर-दक्षिण ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर जैसे प्रोजेक्ट भविष्य में इस लक्ष्य को साकार कर सकते हैं।

अमेरिका का दबाव और भारत की नीति

हाल के वर्षों में अमेरिका ने रूस से हथियारों और तेल खरीद को लेकर भारत पर दबाव बनाया है। विशेषकर जब से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है, तब से पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंधों का सहारा ले रहे हैं। लेकिन भारत ने स्पष्ट किया है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता नहीं करेगा। भारत ने न केवल संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ मतदान से परहेज किया, बल्कि रूस से कच्चे तेल का आयात 2% से बढ़ाकर लगभग 40% तक कर लिया है। यह कदम स्पष्ट करता है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है।

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