भारत और जापान मिलकर तैयार करेंगे फाइटर जेट इंजन

नई दिल्ली। भारत की रक्षा नीति में एक बड़ा मोड़ आता दिख रहा है। अमेरिका से दोस्ती में आई दरार के बीच अब भारत ने जापान की ओर हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया है और मकसद है अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के लिए हाई-टेक इंजन बनाना।

बीते कुछ सालों से भारत ने स्वदेशी रक्षा निर्माण पर ज़ोर दिया है, लेकिन लड़ाकू इंजन जैसी जटिल तकनीक अब तक विदेशी कंपनियों के भरोसे ही रही है। जून 2023 में अमेरिका की GE कंपनी से जो F414 इंजन का समझौता हुआ था, वह उम्मीदों के साथ जुड़ा था, पर अब लगता है कि वो भरोसा डगमगा गया है। 80% तकनीकी ट्रांसफर का वादा तो था, लेकिन जमीन पर चीजें उस रफ्तार से नहीं बढ़ीं जैसी भारत चाहता था।

जापान का नया अवतार

दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान ने हथियार बनाना और बेचना लगभग छोड़ दिया था। उसकी कंपनियां जैसे Mitsubishi Heavy Industries, जो पहले टैंकों, जहाज़ों और हथियारों के लिए मशहूर थीं, उन्होंने मुंह मोड़ लिया और इलेक्ट्रॉनिक्स, गाड़ियों और मशीनों में दुनिया भर में नाम कमाया। लेकिन आज के बदलते दौर में, खासकर चीन की बढ़ती दादागिरी और एशिया की सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए, जापान अब फिर से हथियारों की दुनिया में कदम रख रहा है और भारत उसके लिए एक अहम साझेदार बन सकता है।

भारत-जापान की संभावित डील

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट कहती है कि भारत जापान के साथ मिलकर हाई-परफॉर्मेंस ट्विन-इंजन फाइटर प्रोजेक्ट पर बात कर रहा है। DRDO इसका तकनीकी मूल्यांकन करेगा और फिर रक्षा मंत्रालय को सलाह देगा। इससे साफ है कि यह कोई हवा-हवाई बात नहीं, बल्कि ज़मीनी तैयारी है। जापान की मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया को 6.5 अरब डॉलर के फ्रिगेट बेचे हैं। यह दिखाता है कि जापान अब सिर्फ बातें नहीं कर रहा, बल्कि एक्शन में है। और अगर भारत-जापान मिलकर इंजन बनाते हैं, तो भारत को न केवल पश्चिमी देशों पर से निर्भरता घटेगी, बल्कि सप्लाई चेन की झंझटों से भी राहत मिलेगी।

अमेरिका पर भरोसा क्यों टूटा?

तेजस जैसे स्वदेशी लड़ाकू विमानों के लिए भी भारत को इंजन की सप्लाई में काफी दिक्कतें झेलनी पड़ी थीं। कई बार महीनों तक इंजन की सप्लाई लटकी रही। ऐसे में भारत समझ गया कि एक ही टोकरी में सारे अंडे रखना अब ठीक नहीं। अमेरिका की अपनी राजनीतिक प्राथमिकताएं हैं, और वहां की टेक ट्रांसफर पॉलिसी भी अकसर सीमित रहती है। इसके उलट जापान, जो भारत का रणनीतिक और आर्थिक साझेदार रहा है, उसमें भरोसे की एक अलग ही गहराई है। बुलेट ट्रेन से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक, जापान की तकनीकी निपुणता का भारत पहले ही लाभ उठा रहा है। अब अगर ये साझेदारी रक्षा क्षेत्र में भी हो जाती है, तो ये दोनों देशों के रिश्तों को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगी।

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