चीन: आर्थिक और सैन्य उभार
चीन ने पिछले चार दशकों में अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति की है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में, चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के माध्यम से वैश्विक व्यापार और बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है। उसकी तकनीकी प्रगति, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), 5G और क्वांटम कम्प्यूटिंग में, ने उसे अमेरिका के लिए एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी बनाया है।
सैन्य दृष्टि से, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) का आधुनिकीकरण और दक्षिण चीन सागर में उसकी आक्रामक नीतियां वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर रही हैं। साथ ही, चीन की बढ़ती कूटनीतिक पहुंच, विशेष रूप से अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में, ने अमेरिकी प्रभाव को कम करने का प्रयास किया है।
भारत: उभरती हुई ताकत
दूसरी ओर, भारत ने भी वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत की है। विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में, भारत ने तकनीक, अंतरिक्ष अनुसंधान और रक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। चंद्रयान मिशन, मंगलयान और स्वदेशी रक्षा उपकरणों का विकास भारत की बढ़ती वैज्ञानिक और सैन्य क्षमता को दर्शाता है।
भारत की जनसांख्यिकीय ताकत युवा और कुशल कार्यबल ने उसे तकनीकी नवाचार का केंद्र बनाया है। साथ ही, भारत की कूटनीतिक नीतियां, जैसे क्वाड (QUAD) गठबंधन और वैश्विक दक्षिण के नेतृत्व की भूमिका, ने उसे अमेरिका और चीन के बीच एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में स्थापित किया है।
अमेरिकी वर्चस्व पर खतरा?
अमेरिका अभी भी सैन्य शक्ति, तकनीकी नवाचार और वैश्विक संस्थानों में प्रभाव के मामले में अग्रणी है। नाटो, विश्व बैंक और IMF जैसे संगठनों में उसका दबदबा कायम है। हालांकि, आंतरिक चुनौतियां जैसे राजनीतिक ध्रुवीकरण, आर्थिक असमानता और बुनियादी ढांचे की कमियां उसके वैश्विक प्रभाव को कमजोर कर सकती हैं।
चीन और भारत का उदय अमेरिका के लिए दोहरी चुनौती पेश करता है। जहां चीन प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा में है, वहीं भारत एक सहयोगी और प्रतिस्पर्धी दोनों की भूमिका निभा रहा है। इन दोनों देशों की बढ़ती स्वायत्तता और क्षेत्रीय प्रभाव ने बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर इशारा किया है।
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