भारत की रफ्तार ने चौकाया: अमेरिका-चीन भी पीछे!

नई दिल्ली। साल 2024 भारत के लिए आर्थिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ है। वैश्विक वित्तीय संपत्तियों के क्षेत्र में भारत ने अभूतपूर्व तेजी दिखाई है, जिससे न केवल देश की मिडिल क्लास की आर्थिक क्षमता बढ़ी है बल्कि वैश्विक मंच पर भी उसकी ताकत बढ़ी है। एलियांज ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट 2025 में यह खुलासा हुआ कि भारतीय घरों की वित्तीय संपत्ति में पिछले वर्ष 14.5% की सबसे बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो पिछले आठ सालों में सबसे बड़ी छलांग है।

मिडिल क्लास की बढ़ती ताकत

पिछले 20 वर्षों में भारत में प्रति व्यक्ति वित्तीय संपत्ति लगभग पांच गुना बढ़ी है, जो अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। यह तेजी से बढ़ती मिडिल क्लास की आर्थिक स्थिति और निवेश क्षमता का प्रतीक है। खासतौर पर निवेश में 28.7% की वृद्धि हुई, जबकि बीमा और पेंशन योजनाओं में भी 19.7% की बढ़ोतरी देखने को मिली। बैंक जमा में 8.7% की वृद्धि यह दर्शाती है कि भारतीय परिवार अधिक बचत कर रहे हैं और अपने वित्तीय पोर्टफोलियो का बड़ा हिस्सा सुरक्षित रख रहे हैं।

महंगाई को भी मात

महंगाई को समाहित करते हुए वास्तविक संपत्ति में 9.4% की वृद्धि यह संकेत देती है कि आम जनता की खरीद क्षमता बढ़ी है। महामारी के बाद भारतीयों की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है और उनकी खरीदने की क्षमता अब पूर्व-महामारी के मुकाबले लगभग 40% अधिक हो गई है। इस वर्ष भारत की प्रति व्यक्ति कुल वित्तीय संपत्ति $2,818 तक पहुंच गई है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 15.6% अधिक है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत

वैश्विक संपत्ति वृद्धि के मामले में अमेरिका अभी भी सबसे आगे है, जहां कुल संपत्ति बढ़त का लगभग आधा हिस्सा आता है। पिछले एक दशक में अमेरिका ने कुल संपत्ति वृद्धि में 47% का योगदान दिया है, जबकि चीन का योगदान 20% और पश्चिमी यूरोप का 12% रहा है। हालांकि, भारत ने उभरती बाजारों में सबसे तेज गति से संपत्ति बढ़ाई है और यह वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

संपत्ति असमानता की चिंता

हालांकि संपत्ति की समृद्धि बढ़ी है, लेकिन असमानता भी बढ़ी है। दुनिया भर में अमीर और गरीब के बीच संपत्ति का अंतर कम नहीं हुआ है। विश्व स्तर पर सबसे अमीर 10% लोग कुल संपत्ति का लगभग 60% हिस्सा अपने पास रखते हैं। भारत में यह आंकड़ा 65% तक पहुंच चुका है, जो पिछले 20 वर्षों में बढ़ा है। इससे पता चलता है कि गरीब और अमीर के बीच आर्थिक विभाजन बढ़ रहा है।

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