चीन का फैसला: रणनीतिक और आर्थिक दोनों
अब तक चीन भारतीय फार्मा उत्पादों पर लगभग 30 प्रतिशत टैरिफ वसूलता था, जिससे भारतीय कंपनियों के लिए चीनी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो रहा था। लेकिन अब टैरिफ हटाए जाने के साथ भारतीय कंपनियों को चीन में विस्तार करने का सुनहरा अवसर मिलेगा। यह फैसला ऐसे समय आया है जब अमेरिका ने भारतीय फार्मा उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। इस प्रकार, चीन का यह कदम न सिर्फ भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि यह अमेरिका को एक स्पष्ट संदेश भी देता है कि एशियाई ताकतें व्यापारिक मोर्चे पर एकजुट होकर वैश्विक दबाव का जवाब दे सकती हैं।
अमेरिका को झटका: ट्रंप की नीति पर सवाल
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति के अंतर्गत कई देशों के साथ टैरिफ युद्ध छेड़ा गया, जिसमें भारत भी शामिल था। खासतौर पर फार्मा सेक्टर में अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाने से भारतीय निर्यातकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन अब चीन द्वारा भारतीय दवाओं पर टैरिफ समाप्त किए जाने से अमेरिका को बड़ा भूराजनीतिक झटका लगा है।
एससीओ शिखर सम्मेलन की भूमिका
भारत, चीन और रूस की हालिया समीपता ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नया ध्रुव तैयार कर दिया है। एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) के शिखर सम्मेलन के दौरान इन तीनों देशों के बीच बढ़ती साझेदारी ने अमेरिका की चिंताओं को और गहरा कर दिया है। रूस जहां यूक्रेन संकट पर अपने रुख से पीछे नहीं हटा, वहीं भारत और चीन व्यापारिक स्तर पर समीप आ रहे हैं।
भारत की रणनीति: संतुलन और अवसर
भारत ने अब तक अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ पर कोई प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया नहीं दी है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारत राजनयिक संतुलन बनाए रखना चाहता है, लेकिन साथ ही वह चीन जैसे बड़े बाजारों में अवसरों को भी भुनाने के लिए तैयार है। यह रणनीति भारत को वैश्विक व्यापार में एक निर्णायक भूमिका में लाने की दिशा में अग्रसर कर रही है।
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