बिहार में 'जमीन मालिकों' को राहत, सरकार ने दी खुशखबरी

पटना। बिहार सरकार ने भूमि सुधार और राजस्व रिकॉर्ड को पारदर्शी बनाने के लिए एक बड़ा और व्यापक महाअभियान शुरू किया है, जिसका लाभ अब उन लोगों को भी मिलेगा जिनके पास पुराने जमीन संबंधी दस्तावेज मौजूद नहीं हैं। यह निर्णय राज्य में लंबे समय से चली आ रही जमीनी विवादों की समस्या को जड़ से खत्म करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

दस्तावेज़ न होने पर भी मिलेगा हक़

अब तक हजारों लोग ऐसे थे जो अपनी जमीन पर वर्षों से काबिज होने के बावजूद सरकारी रिकॉर्ड में उसे दर्ज नहीं करा पाए थे, क्योंकि उनके पास खतियान, रसीद, रजिस्ट्री या दाखिल-खारिज जैसे पारंपरिक कागजात नहीं थे। ऐसे मामलों को देखते हुए सरकार ने एक नया प्रावधान किया है: स्वघोषणा पत्र। इस प्रणाली के तहत अब कोई भी व्यक्ति, जिसके पास पारंपरिक दस्तावेज़ नहीं हैं, वह एक घोषणापत्र के माध्यम से यह जानकारी दे सकता है कि वह किस खेसरा नंबर की कितनी जमीन का स्वामी है। इसमें खाता संख्या, खेसरा नंबर, भूमि का क्षेत्रफल जैसी मूल जानकारी शामिल करनी होगी।

15 वैकल्पिक दस्तावेज़ भी होंगे मान्य

राज्य सरकार ने साफ कर दिया है कि केवल स्वघोषणा ही नहीं, बल्कि कुछ वैकल्पिक दस्तावेजों के आधार पर भी लोग अपने स्वामित्व का प्रमाण दे सकते हैं। इसमें बिजली और पानी के बिल, बैंक पासबुक, आधार कार्ड, पैन कार्ड, स्थानीय निकायों से जारी प्रमाण पत्र और वंशावली जैसी चीजें शामिल होने की संभावना है। इससे उन लोगों को बड़ी राहत मिलेगी जो नियमित रूप से जमीन पर रह रहे हैं लेकिन कागजात के अभाव में कानूनी स्वामित्व नहीं प्राप्त कर पा रहे थे।

जमीन विवादों पर लगेगी लगाम

बिहार में जमीनी विवाद वर्षों से पारिवारिक झगड़ों, कानूनी लड़ाइयों और सामाजिक अशांति का कारण बने हुए हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां दस्तावेज़ों की सुरक्षा और प्रबंधन की व्यवस्था नहीं थी, वहां इस कदम से स्थिति में बड़ा सुधार आएगा। स्वघोषणा और वैकल्पिक दस्तावेज़ों की व्यवस्था से अब कोई भी व्यक्ति आसानी से अपनी जमीन का अधिकार प्राप्त कर सकता है।

समावेशी भूमि सुधार की दिशा में कदम

सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि इस अभियान का मकसद किसी को भी बाहर करना नहीं, बल्कि हर जमीन मालिक को रिकॉर्ड से जोड़ना है। यही कारण है कि स्वघोषणा की व्यवस्था की गई है। इससे न सिर्फ भूमि सुधार प्रक्रिया तेज़ होगी, बल्कि सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित वर्गों को भी उनका अधिकार सुनिश्चित किया जा सकेगा।

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