चाबहार पोर्ट: भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
चाबहार बंदरगाह भारत के लिए केवल एक व्यापारिक मार्ग नहीं, बल्कि एक व्यापक रणनीतिक दृष्टिकोण का हिस्सा है। यह पोर्ट न केवल भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक समुद्री और सड़क मार्ग से जोड़ता है, बल्कि पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का विकल्प भी प्रदान करता है, जिस पर चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
भारत ने पिछले वर्षों में इस परियोजना में करीब 500-600 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। इसके तहत न केवल बंदरगाह का विकास किया जा रहा है, बल्कि चाबहार से अफगानिस्तान के ज़ारांज तक एक रेल लिंक का निर्माण भी शामिल है। यह कनेक्टिविटी भारत के 'International North-South Transport Corridor' (INSTC) योजना का हिस्सा है, जो रूस और यूरोप तक व्यापारिक पहुंच को आसान बना सकती है।
अमेरिका के प्रतिबंधों का सीधा असर
अब जब ट्रंप प्रशासन ने चाबहार पर प्रतिबंध लागू कर दिए हैं, तो भारतीय कंपनियों के लिए परियोजना से जुड़े वित्तपोषण और आपूर्ति चैन बनाए रखना बेहद मुश्किल हो सकता है। 'इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड' जैसी कंपनियों को 45 दिनों के भीतर या तो परियोजना से बाहर निकलने का विकल्प चुनना होगा या अमेरिकी वित्तीय प्रणाली से खुद को अलग करने के लिए तैयार रहना होगा।
इस कदम का मतलब है कि इन कंपनियों की अमेरिकी संपत्तियों को जब्त किया जा सकता है, और उन्हें अमेरिकी डॉलर में लेनदेन करने से रोका जा सकता है। चूंकि वैश्विक वित्तीय प्रणाली में डॉलर की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, ऐसे में यह भारत की रणनीतिक परियोजनाओं के लिए एक बड़ा अवरोधक बन सकता है।
क्या ये कदम अमेरिका के लिए भी नुकसानदायक है?
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ये प्रतिबंध अमेरिका के लिए भी उल्टा असर कर सकते हैं। भारत एक उभरती वैश्विक शक्ति है, और यदि अमेरिका बार-बार ऐसे फैसले लेता रहा जो भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को बाधित करें, तो यह नई वैश्विक ध्रुवीयता को जन्म दे सकता है। भारत पहले ही रूस और चीन के साथ कुछ वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्थाओं की दिशा में बढ़ने के संकेत दे चुका है। यह स्थिति अमेरिका के लिए दीर्घकालिक रूप से हानिकारक हो सकती है, क्योंकि भारत जैसे लोकतांत्रिक और स्वतंत्र देशों का समर्थन खोना उसकी वैश्विक स्थिति को कमजोर कर सकता है।
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