क्या है डीए/डीआर विवाद की पृष्ठभूमि?
मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के चलते देशभर की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव पड़ा। इसी दौरान केंद्र सरकार ने महंगाई भत्ते की तीन किस्तों को रोकने का फैसला लिया, जो जनवरी 2020, जुलाई 2020 और जनवरी 2021 की थीं। इसके पीछे सरकार का तर्क था कि महामारी से लड़ने और स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए फंड की जरूरत थी। वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया था कि महामारी के कारण उत्पन्न हुई वित्तीय स्थिति के चलते यह निर्णय लिया गया।
बार-बार उठी मांगें, लेकिन मिला सिर्फ इंकार
हालांकि, इस फैसले के बाद से ही कर्मचारी संगठनों और पेंशनर्स ने लगातार केंद्र सरकार से बकाया डीए/डीआर की बहाली की मांग की। वित्त मंत्रालय को कई ज्ञापन सौंपे गए, संसद में प्रश्न उठे, लेकिन हर बार जवाब यही मिला की "कोविड का वित्तीय प्रभाव लंबा चला, और इन बकायों का भुगतान संभव नहीं है।" सरकार ने यह भी बताया कि डीए/डीआर फ्रीज करने से जो राशि बची, उसे कल्याणकारी योजनाओं में खर्च किया गया। आंकड़ों के अनुसार, लगभग 34,000 करोड़ रुपये इससे बचाए गए, जो विभिन्न सामाजिक और स्वास्थ्य सेवाओं में लगाए गए।
क्या वाकई खत्म हो गई है इसकी उम्मीद?
सरकारी रुख, संसद में दिए गए बयानों और कर्मचारी संगठनों के बदलते रुझान से यह लगभग तय माना जा सकता है कि रोके गए डीए/डीआर का भुगतान अब नहीं होगा। अगस्त 2025 में संसद में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने भी यही दोहराया कि महामारी का असर लंबा रहा और बकाया देना संभव नहीं है। उन्होंने वित्तीय घाटे में आई गिरावट (9.2% से घटकर 4.4%) का हवाला भी दिया।
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