अमेरिका को सबक सीखा सकता है भारत? रिपोर्ट में खुलासा

नई दिल्ली। भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह को 10 साल के लिए लीज पर लिया हैं। यह बंदरगाह न केवल भारत के लिए मध्य एशिया और मध्य पूर्व तक व्यापार के नए मार्ग खोलता है, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीति में भी इसकी अहमियत बढ़ रही है। हालांकि, अमेरिका ने हाल ही में इस बंदरगाह को लेकर भारत को दी गई छूट को वापस ले लिया है। लेकिन भारत पिछे हटने के मूड में दिखाई नहीं दे रहा हैं।

चाबहार बंदरगाह का महत्व

चाबहार बंदरगाह ईरान के दक्षिण-पूर्वी तट पर ओमान की खाड़ी के किनारे स्थित है। यह हिंद महासागर तक ईरान की एकमात्र समुद्री पहुंच है और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस गलियारे के जरिये भारत, रूस और ईरान एक व्यापक 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क के माध्यम से जुड़ते हैं, जो समुद्री, सड़क और रेल मार्गों को जोड़ता है। भारत के लिए यह बंदरगाह पाकिस्तान के बंदरगाहों को बायपास करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ सीधे व्यापार के लिए द्वार खोलता है।

अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव

पिछले साल तक अमेरिकी प्रशासन ने चाबहार बंदरगाह को प्रतिबंधों से मुक्त रखा था, ताकि भारत इस परियोजना में निवेश कर सके। उस समय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे रणनीतिक महत्व देते हुए छूट दी थी। लेकिन हाल ही में इस छूट को वापस ले लिया गया है और अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई भी व्यक्ति या कंपनी इस बंदरगाह के संचालन में शामिल पाया गया, तो उस पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे।

भारत की प्रतिबद्धता और रणनीतिक सोच

नई रिपोर्ट ये बतलाती हैं की भारत की योजना इस परियोजना को पूरी तरह से छोड़ने की नहीं है। भारत ने चाबहार में अब तक करीब 12 करोड़ डॉलर का निवेश किया है और इससे जुड़ी अन्य परियोजनाओं की लागत मिलाकर यह राशि 25 करोड़ डॉलर तक पहुंचती है। चाबहार बंदरगाह भारत के लिए आर्थिक और रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। हालांकि अमेरिकी प्रतिबंधों ने इस परियोजना को बाधित करने की कोशिश की है, लेकिन भारत की प्रतिबद्धता इस बंदरगाह के विकास और संचालन को जारी रखने की है। यह न केवल भारत के व्यापारिक हितों के लिए बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और प्रभाव विस्तार के लिए भी आवश्यक है।

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