मेक इन इंडिया vs मेड इन चाइना: भारत ने दी चीन को सीधी टक्कर

नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा अब केवल आंकड़ों की लड़ाई नहीं रही, बल्कि यह वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग सत्ता की नई लड़ाई का संकेत बन चुकी है। एक समय था जब भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स और छोटे घरेलू उपकरणों की ज़रूरतें पूरी तरह चीन से आयात पर निर्भर थीं। लेकिन अब तस्वीर तेजी से बदल रही है। “मेक इन इंडिया” अभियान ने न केवल देश में रोजगार और निवेश को बढ़ाया है, बल्कि चीन जैसे मैन्युफैक्चरिंग दिग्गज को सीधी चुनौती भी दी है।

BIS के नियमों से चीन की घुसपैठ पर लगाम

भारत सरकार ने हाल के वर्षों में BIS (Bureau of Indian Standards) के तहत क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर (QCO) लागू किए हैं, जिसके चलते अब भारत में बिकने वाले हर इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट को गुणवत्ता प्रमाणन लेना अनिवार्य है। इस कदम का दोहरा प्रभाव पड़ा है। पहला, चीन और अन्य देशों से आने वाले कम गुणवत्ता वाले प्रोडक्ट्स पर रोक लगी है और दूसरा, घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिला है क्योंकि अब कंपनियों को यहीं उत्पादन करना अधिक व्यवहारिक लगने लगा है।

भारत में ही बन रहे हैं हाई-टेक उपकरण

अब भारत में केवल स्मार्टफोन ही नहीं, बल्कि स्मार्ट टीवी, रोबोट वैक्यूम क्लीनर, एयर फ्रायर, बिल्ट-इन रेफ्रिजरेटर और कॉफी मशीन जैसे प्रीमियम उपकरणों का भी निर्माण हो रहा है। डिक्सन टेक्नोलॉजीज ने यूरेका फोर्ब्स के साथ मिलकर रोबोट वैक्यूम क्लीनर बनाना शुरू किया है।

Liebherr, एक यूरोपीय ब्रांड, ने औरंगाबाद में प्रोडक्शन यूनिट स्थापित की है। जबकि Havells और Crompton जैसे घरेलू ब्रांड अब अधिकांश प्रोडक्ट्स देश में ही बना रहे हैं। यह बदलाव दर्शाता है कि भारत अब सिर्फ सस्ते प्रोडक्ट्स का बाजार नहीं, बल्कि गुणवत्ता-निर्माण का केंद्र बनने की ओर बढ़ रहा है।

बदलता उपभोक्ता और बदलती रणनीति

आज का भारतीय उपभोक्ता गुणवत्ता, टिकाऊपन और ब्रांड वैल्यू को प्राथमिकता दे रहा है। इसके साथ ही घरेलू उत्पादन को समर्थन देने का भाव भी मजबूत हुआ है। यही कारण है कि कंपनियाँ अब भारत में निर्माण के लिए तैयार हैं, भले ही बाजार छोटा क्यों न हो। साथ ही, सरकार की PLI (Production Linked Incentive) जैसी योजनाओं ने विदेशी और घरेलू निवेश को आकर्षित किया है।

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भागीदारी

चीन की ‘दादागीरी’ को अब भारत सीधे चुनौती दे रहा है। वैश्विक कंपनियाँ भी चीन के विकल्प खोज रही हैं, और भारत उनकी प्राथमिक सूची में शामिल होता जा रहा है। हालांकि चीन की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता और सप्लाई चेन आज भी बेहद मजबूत है, लेकिन भारत की तेजी से उभरती नीतिगत, तकनीकी और श्रम-आधारित ताकत आने वाले वर्षों में उसे एक स्थायी और भरोसेमंद विकल्प बना सकती है।

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